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बृहस्पतिवार व्रत कथा

गोपाल शुक्ल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :28
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9684

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बृहस्पतिदेव की प्रसन्नता हेतु व्रत की विधि, कथा एवं आरती


साधु ने कहा, “हे लकड़हारे ! तुम किसी बात की चिन्ता मत करो। बृहस्पति के दिन तुम रोज की तरह लकड़ियां लेकर शहर को जाओ। तुमको राज से दुगना धन मिलेगा। जिससे तुम भली भांति बोजन कर लोगे तथा बृहस्पति देव की पूजा का सामान भी आ जाएगा।” इतना कहकर साधु वहाँ से अन्तर्धान हो गये।

धीरे-धीरे समय व्यतीत होने पर फिर वही बृहस्पतिवार का दिन आया। लकड़हारा जंगल से लकड़ी काटकर किसी भी शहर में बेचने गया। उसे उस दिन और दिन से अधिक पैसा मिला। लकड़हारा रूपी राजा ने चना गुड़ आदि लाकर गुरुवार का व्रत किया। उस दिन से उसके सभी क्लेश दूर हुये। परन्तु जब दुबारा बृहस्पतिवार का दिन आया तो वह व्रत करना भूल गया। इस कारण बृहस्पति भगवान नाराज हो गये।

उस दिन से उस नगर के राजा ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया तथा नगर में यह घोषणा करवा दी कि कोई मनुष्य अपने घर में भोजन न बनावे, न आग जलावे और समस्त जनता मेरे यहाँ भोजन करे। इस आज्ञको जो न मानेगा उसके लिए भांसी की सजा दी जायेगी।

राजा की आज्ञानुसार शहर के सभी लोग भोजन करने गये। लेकिन लकड़हारा कुछ देर से पहुँचा इसलिये राजा उसको अपले साथ घर लिवा ले गए और ले जाकर भोदन करा रहे थे तो रानी की दृष्टि उस खूँटी पर पड़ी जिस पर उसका हार लटका हुआ था वह वहाँ पर दिखाई न दिया। रानी ने निश्टय किया कि मेरा हार इस व्य्क्ति ने चुरा लिया है। उसी समय सैनिकों को बुलाकर उसको जेलखाने में डलवा दिया। जब लकड़हारा जेलखाने में पड़ गया तो बहुत दुखी होकर विचार करने लगा कि न जाने कौन से पूर्व जन्मों के कर्म से मुझे यह दुख प्राप्त हुआ है और उसी साधु को याद करने लगा जो कि जंगल में मिला था। उसी समय तत्काल बृहस्पति देव साधु के रूप में प्रकट हुए और उसकी दशा को देखकर कहने लगे अरे मूर्ख ! तूने बृहस्पति देव सथा नहीं की इसलिए दुख पाया है। अब चिन्ता मत कर बृहस्पतिवार के दिन जेलखाने के दरवाजे पर चार रुपये पड़े मिलेंगे। उनसे तू बृहस्पति देव की पूजा करना, तेरे सभी कष्ट दूर हो जायेंगे ।

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