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आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देहाती समाज

देहाती समाज

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :245
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9689

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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास


रमा ने उत्तर दिया-'दरवाजे पर दरबान ही उत्तर दे देगा। मैं काहे को कुछ कहने जाऊँगी?' रमा के स्वर में कुछ झल्लाहट थी।

पूजा में ध्यानावस्थित मौसी ने वेणी बाबू और रमा की बातचीत सुनी। उनका मन वैसे ही क्षुब्ध था, और क्षुब्ध हो उठा। वे अपने को न रोक सकीं, पूजा छोड़ आ ही गईं उन दोनों के पास। रमा की बात पूरी होते-न-होते, गरम घी में पड़ी पानी की छींट-सी छनक कर बोलीं-'दरबान काहे को कहेगा? मैं कहूँगी! मैं क्या कभी भूल सकती हूँ? क्या उठा रखा था तारिणी बाबू ने हमारा विरोध करने में! उन्होंने अपने इसी लड़के से हमारी रमा को ब्याहना चाहा था। सोचा था-ब्याह हो जाने पर यदुनाथ मुखर्जी की सारी धन-दौलत उनकी हो जाएगी! तब तक यतींद्र पैदा नहीं हुआ था। जब मनोरथ पूरा न हुआ, तब इसी ने भैरव आचार्य से जप-तप, टोन-टोटके और न जाने क्या-क्या उपाय करा कर मेरी रमा का सुहाग लूट लिया-उस नीच जातिवाले ने। वह अपने जीवन की पहली सीढ़ी पर ही विधवा हो गई। समझे वेणी, बड़ा ही नीच था-तभी तो मरते बेटे का मुँह देखना तक नसीब नहीं हुआ!' कहते-कहते मौसी हाँफने लगीं। उनके व्यंग्य-बाणों को सुन कर वेणी बाबू की आँखें नीची हो गई। तारिणी घोषाल उनके चाचा थे, उनकी बुराई उन्हें कुछ अखर-सी गई।

रमा ने मौसी से कहा-'किसी की जाति के बारे में तुम्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए। जाति तो किसी के हाथ की बात नहीं है।'

वेणी बाबू ने अपनी झेंप को दबाते हुए कहा-'तुम्हारा घर ऊँचा है! तुमसे हमारा संबंध कैसे हो सकता है? तारिणी चाचा का ऐसा विचार करना ही भूल थी। रही टोने-टोटके और उनके ओछे व्यवहार की बात-सो वह भी ठीक ही कहा है मौसी ने! चाचा से कोई काम बचा नहीं है। और वही भैरव, जिसने यह सब किया, आज रमेश का सगा बना है।'

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