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आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देहाती समाज

देहाती समाज

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :245
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9689

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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास


फिर काफी देर तक दोनों चुपचाप चलते रहे। रमेश का सारा शरीर मारे घृणा और गुस्से के तमतमा रहा था।

'मैं यहाँ कह दूँ आपसे कि क्षांती मौसी है बड़ी हिम्मतवाली, और सभी घरों की सात पुश्त तक का कच्चा चिट्ठा जानती हैं। उसे ये इस तरह आसानी से छुटकारा नहीं देंगे। किंतु यह बात भी पक्की समझिए कि वह बर्रों का छत्ता है-उसे छेड़ने से दाल-आटे का भाव पता चल जाएगा! उनकी ऐसी पोल खोलेगी कि फिर जिंदगी-भर सँभालते न सँभले। सभी के यहाँ पोल भरी पड़ी है। वेणी बाबू को ही...।'

रमेश ने बीच में रोक कर कहा-'उसके बारे में कुछ कहने की जरूरत नहीं, भट्टाचार्य जी!'

'हाँ ठीक ही है! मुझे क्या जरूरत किसी का ढँका उघारने की! और कहीं वेणी ने सुन लिया, तो फिर मेरी खैर ही नहीं!'

'आपका घर अभी और कितनी दूर है?'

'अब तो आ ही गए! इस बाँधा के पास ही है मेरी झोपड़ी। अगर आपके चरण किसी दिन...।'

'हाँ, आऊँगा किसी दिन आपके यहाँ। कल सवेरे तो फिर दर्शन होंगे न आपके और उसके बाद भी दर्शन देते रहिएगा!'

और वहीं से रमेश अपने घर लौट आया! भट्टाचार्य आशीर्वाद की झड़ी लगाते हुए, अपने बालगोपालों के साथ घर चले गए।

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