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आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देहाती समाज

देहाती समाज

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :245
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9689

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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास


यतींद्र ने सिर हिला कर कहा-'हाँ!'

'तू कहता क्या है उनसे?'
अभी तक यतींद्र की रमेश से इतनी समीपता नहीं हुई थी कि यह उन्हें कुछ कह कर पुकारने का अवसर पाता। रमेश के स्कूल में आते ही लड़के तो क्या, हमेशा रोब झाड़नेवाले हेडमास्टर साहब भी भीगी बिल्ली की तरह चुपचाप खड़े हो जाते हैं। छात्रों में से रमेश से कुछ कह कर पुकारना तो दूर रहा, उनकी तरफ मुँह भी उठाने का किसी को साहस नहीं होता। लेकिन अपनी कमजोरी कैसे जाहिर करे, दीदी के सामने! तभी मास्टर साहब के मुँह से उन्हें जिस नाम से पुकारते सुना था, वही कह दिया -'छोटे बाबू कहते हैं हम सब!'

कहते समय उसके मुँह की जो दशा हो गई, उससे रमा सब समझ गई और उसे और भी प्यार से भींच कर कहा-'बेटा, वे तेरे भइया लगते हैं! छोटे बाबू क्यों कहता है? वेणी बाबू को जैसे बड़े भइया कहता है, वैसे ही उन्हें छोटे भइया कहा कर!'

यतींद्र ने खुशी से उछल कर पूछा-'सच, वे मेरे भइया होते हैं?'

'हाँ! सच ही तो कहती हूँ। वे तेरे भइया ही लगते हैं!'

अब यतींद्र के दिल में इस खबर को अपने सभी सहपाठियों से कह देने का हुलास जोर मारने लगा, और उसके लिए वहाँ एक मिनट भी रुकना दूभर हो रहा था। जो दूर के विद्यार्थी थे, उन्हें तो खबर ही नहीं दी जा सकती; पर जो पास-पड़ोस के हैं, उनसे तो बिना कहे रहा भी नहीं जा सकता। तभी जाना चाहते हुए उनसे कहा-'तो अब जाने दो न दीदी!'

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