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आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देवदास

देवदास

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :218
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9690

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कालजयी प्रेम कथा


चन्द्रमुखी ने आह भरी हंसी हंसकर कहा-'हां, बड़ी अच्छी चीज है। जरा मेरे कन्धे का सहारा लेकर कुछ आगे चलो, एक गाड़ी ठीक करनी होगी।'

'गाडी क्या होगी?'
रास्ते में आते-आते देवदास ने बैठे हुए गले से कहा-'सुन्दरी, तुम मुझे पहचानती हो?'

चन्द्रमुखी ने कहा-'पहचानती हूं।'

देवदास ने हकलाते हए कहा-'और लोगों ने तो मुझे भुला दिया है, भाग्य है जो तुम पहचानती हो।' फिर गाड़ी पर सवार होकर चन्द्रमुखी के शरीर पर बोझ दिये ही घर पर आये। दरवाजे के पास खड़े होकर जेब में हाथ डालकर कहा-'सुन्दरी गाड़ी तो ले आयी, किन्तु जेब में कुछ नहीं है।' चन्द्रमुखी ने कोई उत्तर नहीं दिया। चुपचाप हाथ पकड़े हए ऊपर लाकर लिटाकर कहा-'सो जाओ।' देवदास ने उसी भांति बैठे हुए गले से कहा-'क्या कुछ चाहिए नहीं? मैंने जो कहा कि जेब खाली, कुछ मिलने की आशा नहीं है। समझीं सुन्दरी?'

सुन्दरी उसे समझ गयी, कहा-'कल देना।'

देवदास ने कहा-'इतना विश्वास तो ठीक नहीं। क्या चाहिए खुलकर कहो?'

चन्द्रमुखी ने कहा-'कल सुनना।'

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