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आचार्य श्रीराम किंकर जी >> दिव्य संदेश

दिव्य संदेश

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :29
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9692

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सरल भाषा में शिवपुराण


11

तुम्हारे पास धन, विद्या, बुद्धि, वस्तु आदि जो कुछ भी है, सबको भगवान् की चीज समझकर उन्हें यथासाध्य, यथायोग्य भगवान् की सेवा में लगाते रहो।

12

सेवा यथाशक्ति पूर्णरुप से करो, परंतु सेवा का न विज्ञापन करो, न बदला चाहो और न सेवा करके अभिमान करो और जिसकी सेवा बनी है, उसके कृतज्ञ बनो एवं भगवान् की वस्तु भगवान् की सेवा में लगी है, यह समझकर प्रसन्नता प्राप्त करो।

13

सादगी, सरलता, सत्य, सदाचार, सेवा, स्वावलम्बन, साधुता, स्वार्थत्याग औऱ संयम - इन नौ ‘स’ का यथासाध्य सदा सेवन करो।

14

दूसरोंके साथ सदा (छल-कपटरहित), प्रेमपूर्ण तथा हितकर व्यवहार करो।

15

संग्रह-परिग्रह कम-से-कम करो, अपनी आवश्यकताओं को बढ़ाओ मत - घटाओ।

16

परस्त्री, परधन तथा परनिन्दा से सदा बचो।

17

दूसरोंके दोष न देखो, न चिन्तन करो, न कहो और न यथासाध्य सुनो ही।

18

सबमें भगवान् हैं, यह समझकर मन ही मन सबको नमस्कार करो और यथायोग्य, यथासाध्य सबका हित-साधन तथा सबकी सेवा करो।

19

दूसरों से सम्मान चाहो मत, उनको सम्मान प्रदान करो; सेवा चाहो मत, सेवा करो; सुख चाहो मत, सुख दो और प्रेम चाहो मत, प्रेम दो।

20

अपने लिये कंजूस बनो, दूसरों के लिये उदार बनो।

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