लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री और यज्ञोपवीत

गायत्री और यज्ञोपवीत

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :67
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9695

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

259 पाठक हैं

यज्ञोपवीत का भारतीय धर्म में सर्वोपरि स्थान है।


अमौक्तिकमसौवर्णं ब्राह्मणानां विभूषणम्।
देवतानां च पितृणां भागो येन प्रदीयते।।

- मृच्छकटिक 10/81


यज्ञोपवीत न तो मोतियों का है और न स्वर्ण का फिर भी यह बाह्मणों का आभूषण है। इसके द्वारा देवता और पूर्वजों का ऋण चुकाया जाता है।

यज्ञोपवीत परमं  पवित्रं  प्रजापतेर्यत्सहजं  पुरस्तात्।
आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेज:।।

- ब्रह्मोपनिषद्


यज्ञोपवीत परम पवित्र है, प्रजापति ईश्वर ने इसे सबके लिए सहज ही बनाया है। यह, स्फूर्तिदायक, बन्धन से छुड़ाने वाला है। यह बल और तेज देता है।

त्रिरस्यता परमासन्ति सत्यास्पार्हा देवस्य जनि मान्यग्ने:।
अनन्ते अन्त: परिवीत आगाच्छुचि शुक्रो अर्योरोरुचानः।।

- ऋग्वेद 4/1/7


इस यज्ञोपवीत के परम श्रेष्ठ तीन लक्ष्य हैं। सत्य व्यवहार की आकांक्षा, अग्नि के समान तेजस्विता और दिव्य गुणों की पवित्रता इसके द्वारा भली प्रकार प्राप्त होती है।

सदा यज्ञोपवीतिना भाव्यं सदा बद्धशिखेन च।
विशिखो व्यूपवीतश्च यत्करोति न तत्कृतम्।।

- बोधायन


सदा यज्ञोपवीत पहनें और शिखा में गाँठ लगाकर रहें। बिना शिखा और यज्ञोपवीत वाला - जो धार्मिक कर्म करता है सो निकल जाता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai