लोगों की राय

नई पुस्तकें >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 1

प्रेमचन्द की कहानियाँ 1

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :127
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9762

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

105 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पहला भाग


पयाग ने पहर रात ही से चक्की की आवाज सुनी, तो रुक्मिन से बोला - आज तो सिलिया अभी से पीसने लगी। रुक्मिन बाजार से आटा लायी थी। अनाज और आटे के भाव में विशेष अंतर न था। उसे आश्चर्य हुआ कि सिलिया इतने सबेरे क्या पीस रही है। उठ कर कोठरी में आयी, तो देखा कि सिलिया अँधेरे में बैठी कुछ पीस रही है।

उसने जा कर उसका हाथ पकड़ लिया और टोकरी को उठा कर बोली - तुझसे किसने पीसने को कहा है? किसका अनाज पीस रही है?

सिलिया ने निश्शंक हो कर कहा - तुम जा कर आराम से सोती क्यों नहीं। मैं पीसती हूँ, तो तुम्हारा क्या बिगड़ता है ! चक्की की घुमुर-घुमुर भी नहीं सही जाती? लाओ, टोकरी दे दो, बैठे-बैठे कब तक खाऊँगी, दो महीने तो हो गये।

'मैंने तो तुझसे कुछ नहीं कहा !'

'तुम कहो, चाहे न कहो; अपना धरम भी तो कुछ है।'

'तू अभी यहाँ के आदमियों को नहीं जानती। आटा तो पिसाते सबको अच्छा लगता है। पैसे देते रोते हैं। किसका गेहूँ है? मैं सबेरे उसके सिर पर पटक आऊँगी।

सिलिया ने रुक्मिन के हाथ से टोकरी छीन ली और बोली - पैसे क्यों न देंगे? कुछ बेगार करती हूँ?

'तू न मानेगी?'

'तुम्हारी लौंडी बन कर न रहूँगी।'

यह तकरार सुन कर पयाग भी आ पहुँचा और रुक्मिन से बोला - काम करती है तो करने क्यों नहीं देती? अब क्या जनम भर बहुरिया ही बनी रहेगी? हो गये दो महीने।

'तुम क्या जानो, नाक तो मेरी कटेगी।' सिलिया बोल उठी, तो क्या कोई बैठे खिलाता है? चौका-बरतन, झाडू-बहारू, रोटी-पानी, पीसना-कूटना, यह कौन करता है? पानी खींचते-खींचते मेरे हाथों में घट्ठे पड़ गये। मुझसे अब सारा काम न होगा।

पयाग ने कहा - तो तू ही बाजार जाया कर। घर का काम रहने दे ! रुक्मिन कर लेगी। रुक्मिन ने आपत्ति की, ऐसी बात मुँह से निकालते लाज नहीं आती? तीन दिन की बहुरिया बाजार में घूमेगी, तो संसार क्या कहेगा !

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai