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प्रेमचन्द की कहानियाँ 3

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9764

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तीसरा भाग


मालती- बहुत सुन्दर होगी?

अमरनाथ- न सुन्दर है, न रूपवाली, न ऐसी अदाएं कुछ, न मधुर भाषिणी, न तन्वंगी। बिलकुल एक मामूली मासूम लड़की है। लेकिन जब मेरे हाथ से उसने साड़ी छीन ली तो मैं क्या कर सकता हूँ। मेरी गैरत ने तो गवारा न किया कि उसके हाथ से साड़ी छीन लूँ। तुम्हीं इन्साफ करो, वह दिल में क्या कहती?

मालती- तो तुम्हें इसकी ज्यादा परवाह है कि वह अपने दिल में क्या कहेगी। मैं क्या कहूँगी, इसकी जरा भी परवाह न थी! मेरे हाथ से कोई मर्द मेरी कोई चीज़ छीन ले तो देखूं, चाहे वह दूसरा कामदेव ही क्यों न हो।

अमरनाथ- अब इसे चाहे मेरी कायरता समझो, चाहे हिम्मत की कमी, चाहे शराफ़त, मैं उसके हाथ से न छीन सका।

मालती- तो कल वह साड़ी लेकर आयेगी, क्यों?

अमरनाथ- जरूर आयेगी।

मालती- तो जाकर मुंह धो आओ। तुम इतने नादान हो, यह मुझे मालूम न था। साड़ी देकर चले आये, अब कल वह आपको देने आयेगी! कुछ भंग तो नहीं खा गये!

अमरनाथ- खैर, इसका इम्तहान कल ही हो जाएगा, अभी से क्यों बदगुमानी करती हो। तुम शाम को ज़रा देर के लिए मेरे घर तक चली चलना।

मालती- जिससे आप कहें कि यह मेरी बीवी है!

अमरनाथ- मुझे क्या खबर थी कि वह मेरे घर आने के लिए तैयार हो जाएगी, नहीं तो और कोई बहाना कर देता।

मालती- तो आपकी साड़ी आपको मुबारक हो, मैं नहीं जाती।

अमरनाथ- मैं तो रोज तुम्हारे घर आता हूँ, तुम एक दिन के लिए भी नहीं चल सकतीं?

मालती ने निष्ठुरता से कहा- अगर मौक़ा आ जाए तो तुम अपने को मेरा शौहर कहलाना पसन्द करोगे? दिल पर हाथ रखकर कहना।

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