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प्रेमचन्द की कहानियाँ 6

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9767

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छटा भाग


होली के दिन थे। एक सेठ के घर डाका पड़ा। ग़रीब फाग गा रहे थे और खुशियाँ मना रहे थे। रंग में भंग पड़ गया। डाकू मालामाल हो गए। दंगलसिंह ने कहा- ''गुरु, आज धूम से जल्सा हो। आज हम भी होली मनाएँगे।''

दो परियाँ बुलाई गई। शराब का एक प्याला लाकर रख दिया गया। शराब का दौर शुरू हुआ और तबला गमकने लगा। परी शीशे में थी, शीशा परी के हाथ में, खूब शराब उड़ी। दंगल की आखें झपक गईं। मदहोश होकर बोला- ''हम अब सोते हैं। देखें, कौन हमको पकड़ लेता है।''

शिवनाथ के होश वजा थे, मगर आखों में सुरूर आ गया था। धनीसिंह से बोला- ''भइया, दंगल तो गिरे, अब सबेरे ही उठेंगे। तुम्हारी आँखें भी चढ़ी हुई हैं। दूसरे आदमियों का एतबार नहीं। क्यों न तुम भी थोड़ी देर आराम कर लो। फिर तुम्हें जगाकर मैं एक नींद सो लूँगा।''

यह कहकर बंदूक़ हाथ में ली और पहाड़ी के आस-पास चक्कर काटने लगा, मगर हवा लगी तो शराब रंग लाई। एक चट्टान के सहारे खड़ा हो गया और खड़े-खड़े खर्राटे लेने लगा। अब धनीसिंह उठा। वह धुन का पक्का, बात का धनी ठाकुर अपने इरादे पर अब तक क़ायम था। बंदूक़ भरकर लालसिंह के सिर पर जा पहुँचा और ललकार कर बोला- ''डाकू होशियार हो जा। तेरी मौत सिर पर आ पहुँची।''

दंगल सिंह लड़खड़ाता हुआ उठा, मगर गोली सीने के पार हो गई और लाश चट्टान पर तड़पने लगी। बंदूक़ की आवाज शिवनाथ के कान में पहुँची। चट्टान की आड़ से झाँककर देखा तो धनीसिंह बंदूक़ सीने से लगाए उसकी तरफ़ चला आता था। चट्टान से चिपटकर बोला- ''आखिर दगा की !''

धनीसिंह- ''दग़ा का जवाब दगा है।''

शिवनाथ- ''मैं तेरी चाल समझ गया था।''

धनीसिंह- ''समझते तो धोखा न खाते।''

दोनों ने बंदूके दागीं, मगर दोनों निशाने खाली गए। इतने में शोर मच गया। दोनों तरफ़ से आदमी जमा हो गए। धनीसिंह ने शिवनाथ को गिरफ्तार करना चाहा, मगर वह साफ़ निकल गया।

इस तरह एक बात के धनी ठाकुर ने इंतिक़ाम का फ़र्ज पूरा किया और मुल्क को एक भयानक विपत्ति से निजात दी। इसके बाद कई साल तक धनीसिंह के मकान पर कांस्टेबिलों का पहरा रहा और जहाँ कहीं वह जाता, कांस्टेबिल उसकी हिफ़ाज़त के लिए साथ रहते। फिर भी शिवनाथ रात और दिन में कम-से-कम एक बार उसके मकान का चक्कर लगाता और दो-चार निशाने जरूर सर करता, मगर कभी निशाना कारगर न हुआ।

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