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प्रेमचन्द की कहानियाँ 7

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :152
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9768

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सातवाँ भाग


विनोद ने कहा, ''न ईश्वर ने मेरी बुद्धि हरी है, न मुझ पर कोई आफत आई है। मैंने छावनी में एक ऑफ़िसर को मार डाला है। ऐसा निशाना मारा, एक ही गोली में ठंडा हो गया। हिला तक नहीं।''

''क्या वहाँ कोई और न था?''

''कोई नहीं, बिलकुल सन्नाटा था।''

''पुलिस को खबर तो हो गई होगी? ''

''ही, कई शख्स पकड़े गए हैं। मैं तो साफ़ बच निकला।''

रामेश्वरी की हालत बदल गई। बेटे की मुहब्बत में अश्रुपूर्ण आँखें गुस्से से सुर्ख हो गईं। बोली, ''मैं इसे बचना नहीं कहती कि मुजरिम तो मुंह छुपाकर भाग जाए और वेगुनाहों के सजा मिले। तुम खूनी हो। मुझे मालूम नहीं था कि मेरी कोख से ऐसा सपूत पैदा होगा, वरना पैदा होते ही गला घोंट देती। अगर मर्द है तो जाकर अदालत में अपना क़सूर कबूल कर ले, वरना उन बेगुनाहों का खून भी तेरे सर पर होगा।''

यह फटकार सुनकर विनोद को गुस्सा आ गया। बोला, ''तुम्हारे कहने से मैं खूनी नहीं हुआ जाता; और लोग यही काम करते हैं तो लीडर हो जाते हैं। उनकी जय-जयकार होती है। लोग उनकी पूजा करते हैं। मैंने किया तो हत्यारा हो गया?''

रामेश्वरी, ''हत्यारा तो तू है ही और जो दूसरों की हत्या करते हैं वे तमाम-के-तमाम हत्यारे हैं। तेरी माँ होकर मैं भी पाप की हिस्सेदार हो गई। मेरे मुँह पर भी स्याही लग गई। लीडर वह होते हैं जो दूसरों के लिए मरते हैं। जो दूसरों की हिफ़ाज़त करे, वही बहादुर और सूरमा है। उन्हीं का जनम मुबारक है। उन्हीं की माएँ खुशनसीब हैं। तुझे शर्म नहीं आती कि तू खून करके अपनी बड़ाई कर रहा है!''

विनोद ने फिर कंबल उठा लिया और बोला, ''तुम मेरी माँ न होतीं, तो इसी वक्त लगे-हाथ मैं तुम्हारा भी काम तमाम कर देता। जीते-जी फिर तुम्हारा मुँह न देखूँगा।''

यह कहता हुआ वह जोश में घर से निकल पड़ा। दम-भर बाद रामेश्वरी भी उसी जोश में घर से निकली। बैटा है तो क्या? वह यह नाइंसाफ़ी नहीं गवारा कर सकती, वह उसी वक्त कोतवाली में जाकर उस खून की खबर दे देगी। विनोद का फाँसी पर चढ़ना इससे कहीं बेहतर है कि बेगुनाहों को फाँसी हो। लेकिन कुछ दूर चलने के बाद माँ का दिल बेचैन हो गया। वह लौट पड़ी और घर आकर खूब रोई। जिस बेटे को उसने ऐसी-ऐसी मुसीबतें झेलकर पाला, क्या उसे फाँसी दिला देगी?

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