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प्रेमचन्द की कहानियाँ 7

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :152
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9768

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सातवाँ भाग


कमरे में हलचल मच गई। मर्द-औरत सबने रामेश्वरी को चारों तरफ़ से घेर लिया। कई औरतें उसके क़दमों पर सर रखकर रोने लगीं। अपनी खुशी में किसी को इस वात का ख्याल न रहा कि इस बदनसीब के दिल पर क्या गुजर रही है। वह चेतनाशून्य  खड़ी थी। न कुछ सूझता था, न कुछ सुनाई देता था। बस विनोद की सूरत आँखों के सामने थी।

यकायक मजमे में से एक आदमी निकलकर रामेश्वरी के सामने आया और उसके सीने में खंजर उतार दिया। रामेश्वरी चीख मारकर गिर पड़ी और हमलावर के चेहरे की तरफ़ देखकर चौंक पड़ी। उसके मुँह से बेअख्तियार निकल गया, ''अरे, तू है विनोद!''

उसकी आँखों से आँसू के दो क़तरे निकले और आँखें हमेशा के लिए बंद हो गईं।

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5. कानूनी कुमार

मि. कानूनी कुमार, एम.एल.ए. अपने आँफिस में समाचारपत्रों, पत्रिकाओं और रिपोर्टों का एक ढेर लिए बैठे हैं। देश की चिन्ताओं से उनकी देह स्थूल हो गयी है; सदैव देशोद्धार की फिक्र में पड़े रहते हैं। सामने पार्क है उसमें कई लड़के खेल रहे हैं। कुछ परदेवाली स्त्रियाँ भी हैं, फेंसिंग के सामने बहुत-से भिखमंगे बैठे हैं, एक चायवाला एक वृक्ष के नीचे चाय बेच रहा है।

कानूनी कुमार (आप-ही-आप) देश की दशा कितनी खराब होती चली जाती है। गवर्नमेंट कुछ नहीं करती। बस दावतें खाना और मौज उड़ाना उसका काम है।

(पार्क की ओर देखकर) 'आह ! यह कोमल कुमार सिगरेट पी रहे हैं। शोक ! महाशोक ! कोई कुछ नहीं कहता, कोई इसको रोकने की कोशिश भी नहीं करता। तम्बाकू कितनी जहरीली चीज है, बालकों को इससे कितनी हानि होती है, यह कोई नहीं जानता।

(तम्बाकू की रिपोर्ट देखकर) ओफ ! रोंगटे खड़े हो जाते हैं। जितने बालक अपराधी होते हैं, उनमें 75 प्रति सैकड़े सिगरेटबाज होते हैं। बड़ी भयंकर दशा है। हम क्या करें! लाख स्पीचें दो, कोई सुनता ही नहीं। इसको कानून से रोकना चाहिए, नहीं तो अनर्थ हो जायगा।

(कागज पर नोट करता है) तम्बाकू-बहिष्कार-बिल पेश करूँगा। कौंसिल खुलते ही यह बिल पेश कर देना चाहिए।

(एक क्षण के बाद फिर पार्क की ओर ताकता है, और पहरेदार महिलाओं को घास पर बैठे देखकर लम्बी साँस लेता है।)

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