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प्रेमचन्द की कहानियाँ 8

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9769

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का आठवाँ भाग


''हाँ, वह कभी शराब नहीं पीते।''

''और महाशय 'क' ने जनता के रुपए भी नहीं उड़ाए?''

''यह भी असत्य है।''

''और महाशय 'ख' मोटर पर हवा खाने नहीं जाते?''

''मोटर पर हवा खाना कोई अपराध नहीं है।''

''अपराध नहीं है राजाओं के लिए, रईसों के लिए, अफसरों के लिए, जो जनता का खून चूसते हैं। देश-भक्ति का दम भरने वालों के लिए वह वहुत बड़ा अपराध है।''  

''लेकिन यह तो सोचो, इन लोगों को कितना दौड़ना पड़ता है। पैदल कहाँ तक दौड़े?'' ''पैरगाड़ी पर तो चल सकते हैं? यह कुछ बात नहीं है। ये लोग शान दिखाना चाहते हैं, जिसमें लोग समझें, यह भी बहुत बड़े आदमी हैं। हमारी संस्था गरीबों की संस्था है। यहाँ मोटर पर उसी वक्त बैठना चाहिए, जब और किसी तरह काम ही न चल सके और, शराबियों के लिए तो यहाँ स्थान ही न होना चाहिए। आप तो चंदे माँगने जाते नहीं। हमें कितना लज्जित होना पड़ता है, आपको क्या मालूम!''

मैंने गंभीर होकर कहा- ''तुम्हें लोगों से कह देना चाहिए, यह सरासर गलत है। हम और तुम इस संस्था के शुभचिंतक हैं। हमें अपने कार्यकर्ताओं का अपमान करना उचित नहीं। हमें तो इतना ही देखना चाहिए कि वे हमारी कितनी सेवा करते हैं। मैं यह नहीं कहता कि 'क, ख, ग' में बुराइयाँ नहीं हैं। संसार में ऐसा कौन है जिसमें बुराइयाँ न हों? लेकिन बुराइयों के मुक़ाबले में उनमें गुण कितने हैं, यह तो देखो। हम सभी स्वार्थ पर जान देते हैं- ''मकान बनाते हैं, जायदाद खरीदते हैं। और कुछ नहीं, तो आराम से घर में सोते हैं। ये बेचारे चौबीसों घंटे देश-हित की फ़िक्र में डूबे रहते हैं। तीनों ही साल-साल भर की सजा काटकर, कई महीने हुए, लौटे हैं। तीनों ही के उद्योग से अस्पताल और पुस्तकालय खुले, इन्हीं वीरों ने पगांदोलन करके किसानों का लगान कम कराया। अगर इन्हें शराब पीना और धन कमाना होता, तो इस क्षेत्र में आते ही क्यों?''

बालिका ने विचारपूर्ण दृष्टि से मुझे देखा। फिर बोली- ''यह बताइए, महाशय 'ग' शराब पीते हैं या नहीं?''

मैंने निश्चयपूर्वक कहा- ''नहीं। जो यह कहता है, वह झूठ बोलता है।''

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