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प्रेमचन्द की कहानियाँ 8

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9769

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का आठवाँ भाग


रानी- हां मैं उस हार के लिए गुलामी लिख देती।

चन्द्रकुंवरि- हमारे यहॉ (पति) तो भारत-सभा के सभ्य बैठे हैं ढाई सौ रुपये लाख यत्न करके रख छोडे थे, उन्हें यह कहकर उठा ले गये कि घोड़ा लेंगें। क्या भारत-सभावाले बिना घोड़े के नहीं चलते?

रानी- कल ये लोग श्रेणी बांधकर मेरे घर के सामने से जा रहे थे,बडे भले मालूम होते थे।

इतने ही में सेवती नवीन समाचार-पत्र ले आयी।

विरजन ने पूछा- कोई ताजा समाचार है?

सेवती- हां, बालाजी मानिकपुर आये हैं। एक अहीर ने अपनी पुत्री के विवाह का निमंत्रण भेजा था। उस पर प्रयाग से भारतसभा के सभ्योहित रात को चलकर मानिकपुर पहुंचे। अहीरों ने बडे उत्साह और समारोह के साथ उनका स्वागत किया है और सबने मिलकर पांच सौ गाएं भेंट दी हैं बालाजी ने वधू को आशीर्वाद दिया और दुल्हे को हृदय से लगाया। पांच अहीर भारत सभा के सदस्य नियत हुए।

विरजन- बड़े अच्छे समाचार हैं। माधवी, इसे काट के रख लेना। और कुछ?

सेवती- पटना के पासियों ने एक ठाकुरद्वारा बनवाया हैं वहाँ की भारतसभा ने बड़ी धूमधाम से उत्सव किया।

विरजन- पटना के लोग बडे उत्साह से कार्य कर रहे हैं।

चन्द्रकुँवरि- गडूरियां भी अब सिन्दूर लगायेंगी। पासी लोग ठाकुर द्वारे बनवायंगें ?

रुकमणी- क्यों, वे मनुष्य नहीं हैं ? ईश्वर ने उन्हें नहीं बनाया। आप ही अपने स्वामी की पूजा करना जानती हैं?

चन्द्रकुँवरि- चलो, हटो, मुझे पासियों से मिलाती हो। यह मुझे अच्छा नहीं लगता।

रुकमिणी- हाँ, तुम्हारा रंग गोरा है न? और वस्त्र-आभूषणों से सजी बहुत हो। बस इतना ही अन्तर है कि और कुछ?

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