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प्रेमचन्द की कहानियाँ 9

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9770

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का नौवाँ भाग


उसी वक्त हेलेन ने मुझे अपने कमरे में बुला भेजा। जाकर देखता हूं तो सभी खिलाड़ी जमा हैं। हेलेन उस वक्त अपनी शर्बती बेलदार साड़ी में आंखों में चकाचौंध पैदा कर रही थी। मुझे उस पर झुंझलाहट हुई, इस आम मजमे में मुझे बुलाकर कवायद कराने की क्या जरूरत थी। मैं तो खास बर्ताव का अधिकारी था। मैं भूल रहा था कि शायद इसी तरह उनमें से हर एक अपने को खास बर्ताव का अधिकारी समझता हो। हेलेन ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा- दोस्तों, मैं कह नहीं सकती कि आप लोगों की कितनी कृतज्ञ हूं और आपने मेरी जिंदगी की कितनी बड़ी आरजू पूरी कर दी। आपमें से किसी को मिस्टर रतन लाल की याद आती है?

रतन लाल! उसे भी कोई भूल सकता है! वह जिसने पहली बार हिन्दुस्तान की क्रिकेट टीम को इंग्लैण्ड की धरती पर अपने जौहर दिखाने का मौका दिया, जिसने अपने लाखों रुपये इस चीज की नजर किए और आखिर बार-बार की पराजयों से निराश होकर वहीं इंग्लैण्ड में आत्महत्या कर ली। उसकी वह सूरत अब भी हमारी आंखों के सामने फिर रही है। सब ने कहा- खूब अच्छी तरह, अभी बात ही कै दिन की है।

‘आज इस शानदार कामयाबी पर मैं आपको बधाई देती हूं। भगवान ने चाहा तो अगले साल हम इंग्लैण्ड का दौरा करेंगे। आप अभी से इस मोर्चे के लिए तैयारियां कीजिए। लुत्फ जो तब है कि हम वहां एक मैच भी न हारें, मैदान बराबर हमारे हाथ रहे। दोस्तों, यही मेरे जीवन का लक्ष्य है। किसी लक्ष्य का पूरा करने के लिए जो काम किया जाता है उसी का नाम जिन्दगी है। हमें कामयाबी वहीं होती हैं जहां हम अपने पूरे हौसले से काम में लगे हों, वही लक्ष्य हमारा स्वप्न हो, हमारा प्रेम हो, हमारे जीवन का केन्द्र हो। हममें और इस लक्ष्य के बीच में और कोई इच्छा, कोई आरजू दीवार की तरह न खड़ी हो। माफ कीजिएगा, आपने अपने लक्ष्य के लिए जीना नहीं सीखा। आपके लिए क्रिकेट सिर्फ एक मनोरंजन है। आपको उससे प्रेम नहीं। इसी तरह हमारे सैकड़ों दोस्त हैं जिनका दिल कहीं और होता है, दिमाग कहीं और, और वह सारी जिन्दगी का नाकाम रहते हैं। आपके लिए मैं ज्यादा दिलचस्पी की चीज थी, क्रिकेट तो सिर्फ मुझे खुश करने का जरिया था। फिर भी आप कामयाब हुए। मुल्क में आप जैसे हजारों नौजवान हैं जो अगर किसी लक्ष्य की पूर्ति के लिए जीना और मरना सीख जाए तो चमत्कार कर दिखाइए। जाइए और वह कमाल हासिल कीजिए। मेरा रूप और मेरी रातें वासना का खिलौना बनने के लिए नहीं हैं। नौजवानों की आंखों को खुश करने और उनके दिलों में मस्ती पैदा करने के लिए जीना मैं शर्मनाक समझती हूं। जीवन का लक्ष्य इससे कहीं ऊंचा है। सच्ची जिन्दगी वही है जहां हम अपने लिए नहीं सबके लिए जीते हैं।’

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