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प्रेमचन्द की कहानियाँ 10

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :142
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9771

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का दसवाँ भाग


नारी-स्वातंत्र्य के संबंध में भी इसके ख्यालात बहुत दृढ़ थे। बावजूद इन विचारों के वह हिंदुस्तानी मुहब्बत और जज्वात की औरत थी। रीति की पाबंद, शौहर का अदब और मुहब्बत करने वाली।

सरला सोचती थी- ''क्या यह मुमकिन है? उन्हें इन विषयों, बातों से ज़रा भी दिलचस्पी न थी। यह सब किसी अहित-चिंतक की शरारत है। किसी पापात्मा, कलुषमना शख्स ने यह झूठ प्रचार किया है। ऐसा हरगिज़ मुमकिन नहीं।''  

हक़ीक़त यह थी कि आज पुलिस सुपरिंटेंडेंट ने कई कांस्टेबिलों के साथ धीरेन बाबू के मकान की तलाशी ली थी। मंगल के रोज चार बजे शाम को हैरीसन रोड के किनारे एक नौजवान बंगाली ने एक अंग्रेज अफ़सर पर बम गोला चलाया था। इस भयानक हादसे ने सारे शहर में खलबली मचा दी थी। खाना-तलाशियों की गर्मबाज़ारी थी और सबसे अचंभे की बात यह थी कि धीरेन बाबू पर इस कत्ल को कराने का जुर्म लगाया गया था। जो शख्स सुनता उसे हैरत होती। धीरेन बाबू! नहीं, वह हरगिज़ ऐसे मुआमलों में शरीक नहीं हो सकते। वह ऐसे सीधे-सादे, सलामत-पसंद, अपने काम में दिन-रात तल्लीन रहने वाले आदमी थे कि किसी को उनके मुतालिक ऐसी भयानक खबर सुनकर एतबार नहीं आता था और धीरेन बाबू पर यह शुबहा एक मुखविर के बयान की बदौलत हुआ था। मुखबिर ने साफ-साफ कहा था कि मंगल को चार बजे धीरेन बाबू हैरीसन रोड पर मौजूद थे और उन्होंने क़ातिल को अपने हाथ से बमगोला दिया था। इसी बयान की बदौलत आज धीरेन बाबू की खाना-तलाशी हुई। संदूक, अलमारियाँ, काग़ज़ात, एक भी सामान जाँच-पड़ताल करने वाले अफ़सर की चतुर निगाहों से न बचा और बावजूद कि कोई सबूत ऐसा न मिला जिससे धीरेन बाबू पर जुर्म के शुबहा की पुष्टि हो सके। तब भी सुपरिंटेंडेंट ने उन्हें कैद में ले लिया।

सरला इन्हीं परेशान करने वाले वाक़िआत के असर से इस वक्त बेचैन है। वह ख्याल करती थी- ज़रूर सुपरिटेंडेंट पुलिस से गलती हुई। उसने धोखा खाया, मंगल को चार बजे धीरेन अदालत में होंगे। अदालत से इसका सबूत मिल सकता है। उनके मुवक्किल और मित्र इसकी तसदीक कर सकते हैं, मगर धीरेन ने सुपरिंटेंडेंट पुलिस के सामने अपनी रिहाई का सबूत क्यों न ने दिया? मुमकिन है उस वक्त घबराहट में उन्हें ख्याल न रहा हो, अब जरूर उन्होंने सफ़ाई कर ली होगी और ग़ालिबन आते ही होंगे।

इन ख्यालात से सरला का दिल जरा हल्का हुआ। इसी बीच में एक मोटर कार दरवाजे पर आकर रुकी। सरला का कलेजा धड़कने लगा। वह हर्ष से बेताब होकर जीने से नीचे उतरी। मोटर घर ही का था, मगर इसमें धीरेन बाबू की बजाय जोतिंद्र सेन बैठे थे जो धीरेन के दिली दोस्तों में थे।

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