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प्रेमचन्द की कहानियाँ 10

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :142
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9771

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का दसवाँ भाग


दोनों आदमी पैर दबाए ड्योढ़ी में गये और दरवाजे से झाँककर देखा, मूँगा की धुँधली मूरत धरती पर पड़ी थी और उसकी साँस तेजी से चलती हुई सुनाई देती थी। रामसेवक के लहू मांस की भूख में वह अपना लहू और मांस सुखा चुकी थी। एक बच्चा भी उसे गिरा सकता था। परंतु उससे सारा गाँव थर-थर काँपता था। हम जीते मनुष्य से नहीं डरते, पर मुर्दे से डरते हैं। रात गुजरी। दरवाजा बंद था, पर मुंशीजी और नागिन ने बैठकर रात काटी, मूँगा भीतर नहीं घुस सकती थी, पर उसकी आवाज को कौन रोक सकता था मूंगा से अधिक डरावनी उसकी आवाज थी।

भोर को मुंशीजी बाहर निकले और मूँगा से बोले– यहाँ क्यों पड़ी है?

मूँगा बोली– तेरा लहू पीऊँगी।

नागिन ने बल खाकर कहा– तेरा मुँह झुलस दूंगी।

पर नागिन के विष ने मूँगा पर कुछ असर न किया। उसने जोर से ठहाका लगाया, नागिन खिसियानी-सी हो गई। हंसी के सामने मुँह बंद हो जाता है। मुंशीजी फिर बोले– यहां से उठ जा।

‘न उठूँगी।’

‘कब तक पड़ी रहेगी?’

‘तेरा लहू पीकर जाऊंगी।’

मुंशीजी की प्रखर लेखनी का यहाँ कुछ जोर न चला और नागिन की आग-भरी बातें यहाँ सर्द हो गईं। दोनों घर में जाकर सलाह करने लगे, यह बला कैसे टलेगी? इस आपत्ति से कैसे छुटकारा होगा?

देवी आती है तो बकरे का खून पीकर चली जाती है, पर यह डाइन मनुष्य का खून पीने आयी है। वह खून, जिसका अगर एक बूँद भी कलम बनाने के समय निकल पड़ती थी, तो अठवारों और महीनों सारे कुनबे को अफसोस रहता और यह घटना गाँव में घर-घर फैल जाती। क्या वही लहू पीकर मूँगा का सूखा शरीर हरा हो जाएगा?

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