लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 11

प्रेमचन्द की कहानियाँ 11

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :155
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9772

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

113 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का ग्यारहवाँ भाग


वर्षा के दिन थे। देवप्रकाश पत्नी को लेकर गंगा-स्नान करने गये। नदी खूब चढ़ी थी, मानो अनाथ की आँखें हों। उनकी पत्नी निर्मला जल में बैठकर क्रीड़ा करने लगी। कभी आगे जाती, कभी पीछे जाती, कभी डुबकी मारती, कभी अंजुलियों से छींटे उड़ाती। देवप्रकाश ने कहा- अच्छा, अब निकलो, नहीं तो सरदी हो जायगी।

निर्मला ने कहा- कहो, तो मैं छाती तक पानी में चली जाऊँ?

देवप्रकाश- और, जो कहीं पैर फिसल जाय !

निर्मला- पैर क्या फिसलेगा !

यह कहकर छाती तक पानी में चली गई। पति ने कहा- अच्छा, अब आगे पैर न रखना। किंतु निर्मला के सिर पर मौत खेल रही थी। वह जल-क्रीड़ा नहीं-मृत्यु क्रीड़ा थी। उसने एक पग और आगे बढ़ाया और फिसल गई। मुँह से एक चीख निकली; दोनों हाथ सहारे के लिए ऊपर उठे और फिर जल-मग्न हो गए; एक पल में प्यासी नदी उसे पी गई। देवप्रकाश खड़े तौलिये से देह पोंछ रहे थे। तुरंत पानी में कूदे, साथ का कहार भी कूदा। दो मल्लाह भी कूद पड़े। सबने डुबकियाँ मारीं, टटोला; पर निर्मला का पता न चला। तब डोंगी मँगवायी गई। मल्लाहों ने बार-बार गोते मारे; पर लाश हाथ न आयी। देवप्रकाश शोक में डूबे हुए घर आये। सत्यप्रकाश किसी उपहार की आशा में दौड़ा। पिता ने गोद में उठा लिया; और बड़े यत्न करने पर भी अपनी सिसकी न रोक सके। सत्यप्रकाश ने पूछा- अम्माँ कहाँ हैं?

देवप्रकाश- बेटा, गंगा ने उन्हें नेवता खाने के लिए रोक लिया।

सत्यप्रकाश ने उनके मुख की ओर जिज्ञासा-भाव से देखा और आशय समझ गया। ‘अम्माँ-अम्माँ’ कहकर रोने लगा।

मातृहीन बालक संसार का सबसे करुणाजनक प्राणी है। दीन से दीन प्राणियों को भी ईश्वर का आधार होता है, जो उनके हृदय को सँभालता रहता है। मातृहीन बालक इस आधार से भी वंचित होता है। माता ही उसके जीवन का एकमात्र आधार होती है। माता के बिना वह पंखहीन पक्षी है।

सत्यप्रकाश को एकांत से प्रेम हो गया। अकेले बैठा रहता। वृक्षों से उसे उस, सहानुभूति का कुछ-कुछ अज्ञात अनुभव होता था, जो घर के प्राणियों में उसे न मिलती थी। माता का प्रेम था, तो सभी प्रेम करते थे; माता का प्रेम उठ गया, तो सभी निष्ठुर हो गए। पिता की आँखों में भी वह प्रेम-ज्योति न रही। दरिद्र को कौन भिक्षा देता है?

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book