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प्रेमचन्द की कहानियाँ 12

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9773

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बारहवाँ भाग


सेठजी ने डाँटकर कहा- हट जाओ हमारी दूकान के सामने से।

एक वालंटियर ने उत्तर दिया- महाराज, हम तो सड़क पर हैं। क्या यहाँ से भी चले जायँ?

चंदूमल- तुम्हारी सूरत नहीं देखना चाहता।

वालंटियर- तो आप कांग्रेस-कमेटी को लिखिए। हमको तो वहाँ से यहीं खड़े रहकर पहरा देने का हुक्म मिला है।

एक कांस्टेबिल ने आकर कहा- क्या है सेठजी, यह लौंडा क्या टर्राता है?

चंदूमल बोले- मैं कहता हूँ, दूकान के सामने से हट जाओ, पर यह कहता है, न हटेंगे, न हटेंगे। जरा इसकी जबरदस्ती देखो।

कांस्टेबिल- (वालंटियरों से) तुम दोनों यहाँ से जाते हो कि गर्दन नापूँ।

वालंटियर- हम सड़क पर खड़े हैं, दूकान पर नहीं।

कांस्टेबिल का अभीष्ट अपनी कारगुजारी दिखाना था! वह सेठजी को खुश करके कुछ इनाम-एकराम भी लेना चाहता था। उसने वालंटियरों को अपशब्द कहे, और जब उन्होंने उसकी कुछ परवाह न की, तो एक वालंटियर को इतनी जोर से धक्का दिया कि वह बेचारा मुँह के बल जमीन पर गिर पड़ा। कई वालंटियर इधर-उधर से आकर जमा हो गए। कई सिपाही भी आ पहुँचे। दर्शकवृन्द को ऐसी घटनाओं में मजा आता ही है। उनकी भीड़ लग गई। किसी ने हाँक लगायी-’महात्मा गाँधी की जय।’ औरों ने भी उसके सुर-में-सुर मिलाया, देखते-देखते एक जन-समूह एकत्र हो गया।

एक दर्शक ने कहा- क्या है लाला चंदूमल! अपनी दूकान के सामने इन गरीबों की यह दुर्गति करा रहे हो, तुम्हें जरा भी लज्जा नहीं आती? कुछ भगवान का भी डर है या नहीं?

सेठजी ने कहा- मुझसे कसम ले लो, जो मैंने किसी सिपाही से कुछ कहा हो। ये लोग अनायास बेचारों के पीछे पड़ गए। मुझे नाहक बदनाम करते हो।

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