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प्रेमचन्द की कहानियाँ 12

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9773

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बारहवाँ भाग


दोनों और भी सहम उठे। आज ठाकुर जीता न छोड़ेगा। कैसा मिठा-मिठाकर बोल रहा है। उतनी ही भिगो-भिगोकर लगायेगा। बेचारे और भी सिकुड़ गये।

चैनसिंह ने फिर कहा- जल्दी से आओ जी, पक्की-पक्की सब मैं ले लूँगा। जरा एक आदमी लपककर घर से थोड़ा-सा नमक तो ले लो! (बाकी दोनों मजूरों से) तुम भी दोनों आ जाओ, उस पेड़ के बेर मीठे होते हैं। बेर खा ले, काम तो करना ही है।

अब दोनों भगोड़ों को कुछ ढारस हुआ। सभी ने जाकर सब बेर चैनसिंह के आगे डाल दिए और पक्के-पक्के छाँटकर उसे देने लगे। एक आदमी नमक लाने दौड़ा। आधा घंटे तक चारों पुर बंद रहे। जब सब बेर उड़ गये और ठाकुर चलने लगे, तो दोनों अपराधियों ने हाथ जोड़कर कहा- भैयाजी, आज जान बकसी हो जाय, बड़ी भूख लगी थी, नहीं तो कभी न जाते।

चैनसिंह ने नम्रता से कहा- तो इसमें बुराई क्या हुई? मैंने भी तो बेर खाये। एक-आधा घंटे का हरज हुआ यही न? तुम चाहोगे, तो घंटे भर का काम आधा घंटे में कर दोगे। न चाहोगे, दिन-भर में भी घंटे-भर का काम न होगा।

चैनसिंह चला गया, तो चारों बातें करने लगे।

एक ने कहा- मालिक इस तरह रहे, तो काम करने में जी लगता है। यह नहीं कि हरदम छाती पर सवार।

दूसरा- मैंने तो समझा, आज कच्चा ही खा जायेंगे।

तीसरा- कई दिन से देखता हूँ, मिजाज नरम हो गया है।

चौथा- साँझ को पूरी मजूरी मिले तो कहना।

पहला- तुम तो हो गोबर-गनेस। आदमी का रुख नहीं पहचानते।

दूसरा- अब खूब दिल लगाकर काम करेंगे।

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