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प्रेमचन्द की कहानियाँ 13

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9774

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेरहवाँ भाग


मेरा जी तो न मानेगा।’

‘ऐसी बात करोगी, तो मैं तुम्हें लेकर भाग जाऊँगा।’

‘तुम मेरे पास एक बार रोज आया करो। बस, और मैं कुछ नहीं चाहती।’

‘और अम्माँ जो बिगड़ेंगी।’

‘तो मैं समझ गई। तुम मुझे प्यार नहीं करते।

‘मेरा बस होता, तो तुमको अपने परान में रख लेता।’

इसी समय घर के किवाड़ खटके। रुपिया भाग गई।

मोहन दूसरे दिन सोकर उठा तो उसके हृदय में आनंद का सागर-सा भरा हुआ था। वह सोहन को बराबर डाँटता रहता था। सोहन आलसी था। घर के काम-धंधे में जी न लगाता था। मोहन को देखते ही वह साबुन छिपाकर भाग जाने का अवसर खोजने लगा। मोहन ने मुस्कराकर कहा- धोती बहुत मैली हो गई है सोहन? धोबी को क्यों नहीं देते?

सोहन को इन शब्दों में स्नेह की गंध आई।

‘धोबिन पैसे माँगती है।’

‘तो पैसे अम्माँ से क्यों नहीं माँग लेते?’

‘अम्माँ कौन पैसे दिये देती है?’

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