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प्रेमचन्द की कहानियाँ 13

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9774

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेरहवाँ भाग


‘तो मैं क्या करूँगी?’

‘तुम लड़कों से काम लो, जो तुम्हारा धर्म है।’

‘मेरी सुनता है कोई?’

आज मोहन बाजार से दूध पहुँचाकर लौटा, तो पान, कत्था, सुपारी, एक छोटा-सा पानदान और थोड़ी-सी मिठाई लाया। बूटी बिगड़कर बोली- आज पैसे कहीं फालतू मिल गए थे क्या? इस तरह उड़ावेगा तो कै दिन निबाह होगा?

‘मैंने तो एक पैसा भी नहीं उड़ाया अम्माँ। पहले मैं समझता था, तुम पान खातीं ही नहीं।

‘तो अब मैं पान खाऊँगी!’

‘हाँ, और क्या! जिसके दो-दो जवान बेटे हों, क्या वह इतना शौक भी न करे?’

बूटी के सूखे कठोर हृदय में कहीं से कुछ हरियाली निकल आई, एक नन्ही-सी कोंपल थी; उसके अंदर कितना रस था। उसने मैना और सोहन को एक-एक मिठाई दे दी और एक मोहन को देने लगी।

‘मिठाई तो लड़कों के लिए लाया था अम्माँ।’

‘और तू तो बूढ़ा हो गया, क्यों?’

‘इन लड़कों क सामने तो बूढ़ा ही हूँ।’

‘लेकिन मेरे सामने तो लड़का ही है।’

मोहन ने मिठाई ले ली। मैना ने मिठाई पाते ही गप से मुँह में डाल ली थी। वह केवल मिठाई का स्वाद जीभ पर छोड़कर कब की गायब हो चुकी थी। मोहन को ललचाई आँखों से देखने लगी। मोहन ने आधा लड्डू तोड़कर मैना को दे दिया। एक मिठाई दोने में बची थी। बूटी ने उसे मोहन की तरफ बढ़ाकर कहा- लाया भी तो इतनी-सी मिठाई। यह ले ले।

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