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प्रेमचन्द की कहानियाँ 14

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :163
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9775

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौदहवाँ भाग


'सहसा वही जख्मी आदमी उठकर मजूरों के सामने आया और उन्हें समझाकर मेरी प्राणरक्षा की। वह न आ जाता, तो मैं किसी तरह जीता न बचता।'

'ईश्वर ने बड़ी कुशल की ! इसीलिए मैं मना कर रही थी कि अकेले न जाओ। उस आदमी को लोग अस्पताल ले गये होंगे?'

सेठजी ने शोक-भरे स्वर में कहा, 'मुझे भय है कि वह मर गया होगा ।जब मैं मोटर पर बैठा, तो मैंने देखा, वह गिर पड़ा और बहुत-से आदमी उसे घेरकर खड़े हो गये। न-जाने उसकी क्या दशा हुई।'

प्रमीला उन देवियों में थी जिनकी नसों में रक्त की जगह श्रद्धा बहती है। स्नान-पूजा, तप और व्रत यही उसके जीवन के आधार थे। सुख में, दु:ख में, आराम में, उपासना ही उसका कवच थी। इस समय भी उस पर संकट आ पड़ा। ईश्वर के सिवा कौन उसका उद्धार करेगा ! वह वहीं खड़ी द्वार की ओर ताक रही थी और उसका धर्म-निष्ठ मन ईश्वर के चरणों में गिरकर क्षमा की भिक्षा माँग रहा था। सेठजी बोले यह मजूर उस जन्म का कोई महान् पुरुष था। नहीं तो जिस आदमी ने उसे मारा, उसी की प्राणरक्षा के लिए क्यों इतनी तपस्या करता !

प्रमीला श्रद्धा-भाव से बोली, भगवान् की प्रेरणा और क्या ! भगवान् की दया होती है, तभी हमारे मन में सद्विचार भी आते हैं। सेठजी ने जिज्ञासा की- 'तो फिर बुरे विचार भी ईश्वर की प्रेरणा ही से आते होंगे?'

प्रमीला तत्परता के साथ बोली, 'ईश्वर आनन्द-स्वरूप हैं। दीपक से कभी अन्धकार नहीं निकल सकता।

सेठजी कोई जवाब सोच ही रहे थे कि बाहर शोर सुनकर चौंक पड़े। दोनों ने सड़क की तरफ की खिड़की खोलकर देखा, तो हजारों आदमी काली झण्डियाँ लिए दाहिनी तरफ से आते दिखाई दिये। झण्डियों के बाद एक अर्थी थी, सिर-ही-सिर दिखाई देते थे। यह गोपीनाथ के जनाजे का जुलूस था। सेठजी तो मोटर पर बैठकर मिल से घर की ओर चले, उधर मजूरों ने दूसरी मिलों में इस हत्याकाण्ड की सूचना भेज दी। दम-के-दम में सारे शहर में यह खबर बिजली की तरह दौड़ गयी और कई मिलों में हड़ताल हो गयी। नगर में सनसनी फैल गयी। किसी भीषण उपद्रव के भय से लोगों ने दूकानें बन्द कर दीं। यह जुलूस नगर के मुख्य स्थानों का चक्कर लगाता हुआ सेठ खूबचन्द के द्वार पर आया है और गोपीनाथ के खून का बदला लेने पर तुला हुआ है। उधर पुलिस-अधिकारियों ने सेठजी की रक्षा करने का निश्चय कर लिया है, चाहे खून की नदी ही क्यों न बह जाय। जुलूस के पीछे सशस्त्र पुलिस के दो सौ जवान डबल मार्च से उपद्रवकारियों का दमन करने चले आ रहे हैं।

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