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प्रेमचन्द की कहानियाँ 15

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :167
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9776

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पन्द्रहवाँ भाग


अब मैं उस वृत्तान्त को न बढ़ाऊँगा। सारांश यह है, कि जोशी ने ढपोरसंख के मत्थे सौ रुपये के कपड़े और सौ रुपये से कुछ ऊपर के गहनों का बोझ लादा। बेचारे ने एक मित्र से सौ रुपये उधार लेकर उसके सफर खर्च को दिया। खुद ब्याह में शरीक हुए। ब्याह में खासी धूमधाम रही। कन्या के पिता ने मेहमानों का आदर-सत्कार खूब किया। उन्हें जल्दी थी; इसलिए वह खुद तो दूसरे ही दिन चले आये; पर माथुर जोशी के साथ विवाह के अन्त तक रहा। ढपोरसंख को आशा थी, कि जोशी ससुराल के रुपये पाते ही माथुर के हाथों भेज देगा, या खुद लेता आयेगा। मगर माथुर भी दूसरे दिन आ गये, खाली हाथ और यह खबर लाये, कि जोशी को ससुराल में कुछ भी हाथ नहीं लगा। माथुर से उन्हें अब मालूम हुआ कि लड़की से जमुना-तट पर मिलने की बात सर्वथा निर्मूल थी। इस लड़की से जोशी बहुत दिनों तक पत्र-व्यवहार करता रहा था।

फिर तो ढपोरसंख के कान खड़े हो गये। माथुर से पूछा, 'अच्छा! यह बिलकुल कल्पना थी उसकी?'

माथुर- 'ज़ी हाँ।'

ढपोरसंख -'अच्छा, तुम्हारी भांजी के विवाह का क्या हुआ?'

माथुर- 'अभी तो कुछ नहीं हुआ।

ढपोरसंख- 'मगर जोशी ने कई महीने तक तुम्हारी सहायता तो खूब की?'

माथुर- 'मेरी सहायता वह क्या करता। हाँ, दोनों जून भोजन भले कर लेता था।'

ढपोरसंख- 'तुम्हारे नाम पर उसने मुझसे जो रुपये लिये थे, वह तो तुम्हें दिये होंगे?'

माथुर- 'क्या मेरे नाम पर भी कुछ रुपये लिये थे?'

ढपोरसंख- 'हाँ भाई, तुम्हारे घर का किराया देने के लिए तो ले गया था।'

माथुर- 'सरासर बेईमानी। मुझे उसने एक पैसा भी नहीं दिया, उलटे और एक महाजन से मेरे नाम पर सौ रुपयों का स्टाम्प लिखकर रुपये लिये।'

मैं क्या जानता था कि धोखा दे रहा है। संयोग से उसी वक्त आगरे से वह सज्जन आ गये जिनके पास जोशी कुछ दिनों रहा था। उन्होंने माथुर को देखकर पूछा, 'अच्छा! आप अभी जिंदा हैं। जोशी ने तो कहा था, माथुर मर गया है।'

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