कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 15 प्रेमचन्द की कहानियाँ 15प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पन्द्रहवाँ भाग
जुम्मन- कहिए बाबूजी, तांगा…वह तो इस तरफ देखते ही नहीं, शायद इक्का लेंगे। मुबारक। कम खर्च बालानशीन, मगर कमर रह जायगी बाबूजी, सडक खराब है, इक्के में तकलीफ होगी। अखबार में पढ़ा होगा कल चार इक्के इसी सड़क पर उलट गये। चुंगी (म्युनिस्पिलटी) सलामत रहे, इक्के बिल्कुल बन्द हो जायेंगे। मोटर, लारी तो सड़क खराब करे और नुकसान हो हम गरीब इक्केवालों का। कुछ दिनों में हवाई जहाज में सवारियां चलेंगी, तब हम इक्केवालों को सड़क मिल जायेगी। देखेंगे उस वक्त इन लारियों को कौन पूछेता है, अजायबघरों में देखने को मिले तो मिलें। अभी तो उनके दिमाग ही नहीं मिलते। अरे साहब, रास्ता निकलना दुश्वार कर दिया है, गोया कुल सड़क उन्हीं के वास्ते है और हमारे वास्ते पटरी और धूल! अभी ऐठतें है, हवाई जहाजों को आने दीजिए। क्यों हुजूर, इन मोटर वाले की आधी आमदनी लेकर सरकार सड़क की मरम्मत में क्यों नही खर्च करती? या पेट्रोल पर चौगुना टैक्स लगा दे। यह अपने को टैक्सी कहते हैं, इसके माने तो टैक्स देने वाले हैं। ऐ हुजूर, मेरी बुढिया कहती है इक्का छोड़ तांगा लिया, मगर अब तांगे में भी कुछ नहीं रहा, मोटर लो। मैंने जवाब दिया कि अपने हाथ-पैर की सवारी रखोगी या दूसरे के। बस हुजूर वह चुप हो गयी। और सुनिए, कल की बात है कल्लन ने मोटर चलाया, मियां एक दरख्त से टकरा गये, वहीं शहीद हो गये। एक बेवा और दस बच्चे यतीम छोड़े। हुजूर, मैं गरीब आदमी हूं, अपने बच्चों को पाल लेता हूं, और क्या चाहिए। आज कुछ कम चालीस साल से इक्केवानी करता हूं, थोड़े दिन और रहे वह भी इसी तरह चाबुक लिये कट जायेगें। फिर हुजूर देखें, तो इक्का, तांगा और घोड़ा गिरे पर भी कुछ-न-कुछ दे ही जायेगा। बरअक्स इसके मोटर बन्द हो जाय तो हुजूर उसका लोहा दो रूपये मे भी कोई न लेगा। हुजूर घोड़ा घोड़ा ही है, सवारियां पैदल जा रही है, या हाथी की लाश खीचं रही है। हुजूर घोड़े पर हर तरह का काबू और हर सूरत मे नफा। मोटर मे कोई आराम थोड़े ही है। तांगे मे सवारी भी सो रही है, हम भी सो रहे है और घोड़ा भी सो रहा है मगर मंजिल तय हो रही है। मोटर के शारे से तो कान के पर्दे फटते है और हांकने वाले को तो जैस चक्की पीसना पड़ता है।
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