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प्रेमंचन्द की कहानियाँ 16

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9777

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सोलहवाँ भाग


यह एक बड़ा गाँव था। पक्के मकान बहुत थे। मगर उनमें प्रेतात्माएँ आबाद थीं। कई साल पहले प्लेग ने आबादी के बड़े हिस्से को इस क्षणभंगुर संसार से उठाकर स्वर्ग में पहुँचा दिया था। इस वक़्त प्लेग के बचे-खुचे वे लोग गाँव के नौजवान और शौकीन जमींदार साहब और हल्के के कारगुजार ओर रोबीले थानेदार साहब थे। उनकी मिली-जुली कोशिशों से गॉँव में सतयुग का राज था। धन-दौलत को लोग जान का अजाब समझते थे। उसे गुनाह की तरह छुपाते थे। घर-घर में रुपये रहते हुए लोग कर्ज़ ले-लेकर खाते और फटेहालों की तरह रहते थे। इसी में निबाह था। काजल की कोठरी थी, सफ़ेद कपड़े पहनना उन पर धब्बा लगाना था। हुकूमत और जबर्दस्ती का बाज़ार गर्म था। अहीरों के यहाँ आँजन के लिए भी दूध न था। थाने में दूध की नदी बहती थी। मवेशीखाने के मुहर्रिर दूध की कुल्लियाँ करते थे।

इसी अंधेरनगरी को मगनदास ने अपना घर बनाया। ठाकुर साहब ने असाधारण उदारता से काम लेकर उसे रहने के लिए एक मकान भी दे दिया। जो केवल बहुत व्यापक अर्थों में मकान कहा जा सकता था। इसी झोंपड़ी में वह एक हफ़्ते से ज़िन्दगी के दिन काट रहा है। उसका चेहरा जर्द है और कपड़े मैले हो रहे हैं। मगर ऐसा मालूम होता है कि उसे अब इन बातों की अनुभूति ही नहीं रही। ज़िन्दा है मगर ज़िन्दगी रुख़सत हो गई है। हिम्मत और हौसला मुश्किल को आसान कर सकते हैं आँधी और तूफ़ान से बचा सकते हैं मगर चेहरे को खिला सकना उनके सामर्थ्य से बाहर है। टूटी हुई नाव पर बैठकर मल्हार गाना हिम्मत का काम नहीं हिमाकत का काम है।

एक रोज जब शाम के वक़्त वह अंधरे में खाट पर पड़ा हुआ था। एक औरत उसके दरवाज़े पर आकर भीख मांगने लगी। मगनदास को आवाज परिचित जान पड़ी। बाहर आकर देखा तो वही चम्पा मालिन थी। कपड़े तार–तार, मुसीबत की रोती हुई तसवीर। बोला- मालिन? तुम्हारी यह क्या हालत है? मुझे पहचानती हो?

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