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प्रेमचन्द की कहानियाँ 17

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :281
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9778

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सत्रहवाँ भाग


भामा ने गिन्नियां देखीं, हृदय में एक गुदगुदी-सी हुई। पूछा– किसकी हैं?

‘मेरी।’

‘चलो, कहाँ हो न।’

‘पड़ी मिली है।’

‘झूठी बात। ऐसे ही भाग्य के बली हो तो सच बताओ, कहाँ मिलीं? किसकी हैं?’

‘सच कहता हूँ, पड़ी मिली हैं।’

‘मेरी कसम?’

‘तुम्हारी कसम।’

भामा गिन्नियों को पति के हाथ से छीनने की चेष्टा करने लगी।

ब्रजनाथ ने कहा– क्यों छीनती हो?

भामा– लाओ, मैं अपने पास रख लूँ।

‘रहने दीजिए, मैं इनकी इत्तिला करने थाने जाता हूँ।’

भामा का मुख मलिन हो गया। बोली– पड़े हुए धन की क्या इत्तिला?

ब्रजनाथ– हाँ और क्या, इन आठ गिन्नियों के लिए ईमान बिगाड़ूँ न?

भामा– अच्छा, तो सबेरे चले जाना। इस समय जाओगे, तो आने में देरी होगी।

ब्रजनाथ ने भी सोचा, यही अच्छा है, थानेवाले रात को तो कोई कार्रवाई करेंगे नहीं। जब अशर्फियों को पड़ा ही रहना है, तब जैसे थाना वैसे मेरा घर।

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