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प्रेमचन्द की कहानियाँ 19

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9780

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्नीसवाँ भाग


गोकुल ने कुछ शंकित होकर कहा- और अगर मानी न मंजूर करे?

इंद्रनाथ को यह शंका बिल्कुल निर्मूल जान पड़ी। बोले- तुम इस समय बच्चों की-सी बात कर रहे हो गोकुल। यह मानी हुई बात है कि मानी आसानी से मंजूर न करेगी। वह इस घर में ठोकरें खायेगी, झिड़कियाँ सहेगी, गालियाँ सुनेगी, पर इसी घर में रहेगी। युगों के संस्कारों को ‍मिटा देना आसान नहीं है, लेकिन हमें उसको राजी करना पड़ेगा। उसके मन से संचित संस्कारों को निकालना पड़ेगा। मैं विधवाओं के पुनर्विवाह के पक्ष में नहीं हूँ। मेरा खयाल है कि पतिव्रत का अलौकिक आदर्श संसार का अमूल्य रत्न है और हमें बहुत सोच-समझकर उस पर आघात करना चाहिए; लेकिन मानी के विषय में यह बात नहीं उठती। प्रेम और भक्ति नाम से नहीं, व्यक्ति से होती है। जिस पुरुष की उसने सूरत भी नहीं देखी, उससे उसे प्रेम नहीं हो सकता। केवल रस्म की बात है। इस आडंबर की, इस दिखावे की, हमें परवाह नहीं करनी चाहिए। देखो, शायद कोई तुम्हें ‍बुला रहा है। मैं भी जा रहा हूँ। दो-तीन दिन में ‍फिर मिलूँगा, मगर ऐसा न हो कि तुम संकोच में पड़कर सोचते-विचारते रह जाओ और दिन निकलते चले जायँ।

गोकुल ने उसके गले में हाथ डालकर कहा- मैं परसों खुद ही आऊँगा।

बारात विदा हो गयी थी। मेहमान भी रुखसत हो गये थे। रात के नौ बज गये ‍थे। विवाह के बाद की नींद मशहूर है। घर के सभी लोग सरेशाम से सो रहे थे। कोई चारपाई पर, कोई तख्त पर, कोई जमीन पर, जिसे जहाँ जगह मिल गयी, वहीं सो रहा था। केवल मानी घर की देखभाल कर रही थी और ऊपर गोकुल अपने कमरे में बैठा हुआ समाचार पढ़ रहा था।

सहसा गोकुल ने पुकारा- मानी, एक ग्लास ठंडा पानी तो लाना, प्यास लगी है।

मानी पानी लेकर ऊपर गयी और मेज पर पानी रखकर लौटना ही चाहती थी कि गोकुल ने कहा- जरा ठहरो मानी, तुमसे कुछ कहना है।

मानी ने कहा- अभी फुरसत नहीं है भाई, सारा घर सो रहा है। कहीं कोई घुस आये तो लोटा-थाली भी न बचे।

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