कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 21 प्रेमचन्द की कहानियाँ 21प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इक्कीसवाँ भाग
श्यामा कहती- क्यों भइया, बच्चे निकलकर फुर से उड़ जायेंगे?
केशव विद्वानों जैसे गर्व से कहता- नहीं री पगली, पहले पर निकलेंगे। बगैर परों के बेचारे कैसे उड़ेंगे?
श्यामा- बच्चों को क्या खिलायेगी बेचारी?
केशव इस पेचीदा सवाल का जवाब कुछ न दे सकता था।
इस तरह तीन-चार दिन गुजर गए। दोनों बच्चों की जिज्ञासा दिन-दिन बढ़ती जाती थी अण्डों को देखने के लिए वह अधीर हो उठते थे। उन्होंने अनुमान लगाया कि अब बच्चे जरूर निकल आये होंगे। बच्चों के चारों का सवाल अब उनके सामने आ खड़ा हुआ। चिड़ियां बेचारी इतना दाना कहां पायेंगी कि सारे बच्चों का पेट भरें। ग़रीब बच्चे भूख के मारे चूं-चूं करके मर जायेंगे।
इस मुसीबत का अन्दाजा करके दोनों घबरा उठे। दोनों ने फैसला किया कि कार्निस पर थोड़ा-सा दाना रख दिया जाये। श्यामा खुश होकर बोली- तब तो चिड़ियों को चारे के लिए कहीं उड़कर न जाना पड़ेगा न?
केशव- नहीं, तब क्यों जायेंगी?
श्यामा- क्यों भइया, बच्चों को धूप न लगती होगी?
केशव का ध्यान इस तकलीफ की तरफ न गया था। बोला- जरूर तकलीफ हो रही होगी। बेचारे प्यास के मारे तड़फ रहे होंगे। ऊपर छाया भी तो कोई नहीं ।
आखिर यही फैसला हुआ कि घोंसले के ऊपर कपड़े की छत बना देनी चाहिये। पानी की प्याली और थोड़े-से चावल रख देने का प्रस्ताव भी स्वीकृत हो गया।
दोनों बच्चे बड़े चाव से काम करने लगे। श्यामा माँ की आंख बचाकर मटके से चावल निकाल लायी। केशव ने पत्थर की प्याली का तेल चुपके से जमीन पर गिरा दिया और खूब साफ़ करके उसमें पानी भरा।
अब चांदनी के लिए कपड़ा कहां से लाएं? फिर ऊपर बगैर छड़ियों के कपड़ा ठहरेगा कैसे और छड़ियां खड़ी होंगी कैसे?
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