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प्रेमचन्द की कहानियाँ 22

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9783

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बाइसवाँ भाग


दूसरी देवी ने आँखें मटकाते हुए कहा– अरे, तो यह तो बदे की बात है। सभी के दिन हँसी-खुशी से कटें तो रोये कौन। यहाँ तो सुबह से शाम तक चक्की-चूल्हे से छुट्टी नहीं मिलती; किसी बच्चे को दस्त आ रहें तो किसी को ज्वर चढ़ा हुआ है; कोई मिठाइयों की रट कर रहा है; तो कोई पैसों के लिए महानामथ मचाये हुए है। दिन भर हाय-हाय करते बीत जाता है। सारे दिन कठपुतलियों की भाँति नाचती रहती हूँ।

तीसरी रमणी ने इस कथन का रहस्यमय भाव से विरोध किया– बदे की बात नहीं, वैसा दिल चाहिए। तुम्हें तो कोई राजसिंहासन पर बिठा दे तब भी तस्कीन न होगी। तब और भी हाय-हाय करोगी।

इस पर एक वृद्धा ने कहा– नौज ऐसा दिल; यह भी कोई दिल है कि घर में चाहे आग लग जाय, दुनिया में कितना ही उपहास हो रहा हो, लेकिन आदमी अपने राग-रंग में मस्त रहे। वह दिल है कि पत्थर! हम गृहिणी कहलाती हैं, हमारा काम है अपनी गृहस्थी में रत रहना। आमोद-प्रमोद में दिन काटना हमारा काम नहीं।

और महिलाओं ने इस निर्दय व्यंग्य पर लज्जित हो कर सिर झुका लिया। वे जागेश्वरी की चटुकियाँ लेना चाहती थीं। उसके साथ बिल्ली और चूहे की निर्दयी क्रीडा करना चाहती थीं। आहत को तड़पाना उनका उद्देश्य था। इस खुली हुई चोट ने उनके पर-पीड़न प्रेम के लिए कोई गुंजाइश न छोड़ी; किंतु जागेश्वरी को ताड़ना मिल गयी। स्त्रियों के विदा होने के बाद उसने जाकर पति से यह सारी कथा सुनायी। हृदयनाथ उन पुरुषों में न थे जो प्रत्येक अवसर पर अपनी आत्मिक स्वाधीनता का स्वांग भरते हैं, हठधर्मी को आत्म-स्वातंत्र्य के नाम से छिपाते हैं। वह चिंतित भाव से बोले– तो अब क्या होगा?

जागेश्वरी– तुम्हीं कोई उपाय सोचो।

हृदयनाथ– पड़ोसियों ने जो आक्षेप किया है वह सर्वथा उचित है। कैलासकुमारी के स्वभाव में मुझे एक विचित्र अन्तर दिखाई दे रहा है। मुझे स्वयं ज्ञात हो रहा है कि उसके मन बहलाव के लिए हम लोगों ने जो उपाय निकाला है वह मुनासिब नहीं है। उनका यह कथन सत्य है कि विधवाओं के लिए आमोद-प्रामोद वर्जित है। अब हमें यह परिपाटी छोड़नी पड़ेगी।

जागेश्वरी– लेकिन कैलासी तो इन खेल-तमाशों के बिना एक दिन भी नहीं रह सकती।

हृदयनाथ– उसकी मनोवृत्तियों को बदलना पड़ेगा।

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