लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 22

प्रेमचन्द की कहानियाँ 22

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9783

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

54 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बाइसवाँ भाग


खाला– अपनी विपद तो सबके आगे रो आयी हूँ, आने न आने का अख्तियार उनको है।

अलगू– यों आने को आ जाऊँगा, मगर पंचायत में मुँह न खोलूँगा।

खाला– क्यों बेटा?

अलगू– अब इसका क्या जवाब दूँ? अपनी खुशी! जुम्मन मेरा पुराना मित्र है। उससे बिगाड़ नहीं कर सकता।

खाला– बेटा, क्या बिगाड़ के भय से ईमान की बात न कहोगे?

हमारे सोये हुए धर्म-ज्ञान की सारी सम्पत्ति लुट जाए, तो उसे खबर नहीं होती, परन्तु ललकार सुनकर वह सचेत हो जाता है। फिर उसे कोई जीत नहीं सकता। अलगू इस सवाल का कोई जवाब न दे सके, पर उनके हृदय में ये शब्द गूँज रहे थेः

‘‘क्या बिगाड़ के भय से ईमान की बात न कहोगे?’’

संध्या समय एक पेड़ के नीचे पंचायत बैठी। शेख जुम्मन ने पहले से ही फर्श बिछा रखा था। उन्होंने पान, इलायची, हुक्के-तम्बाकू आदि का प्रबन्ध भी किया था। हाँ, वह स्वयं अलबत्ता अलगू चौधरी के साथ जरा दूर पर बैठे थे जब कोई पंचायत में आ जाता था, तब दवे हुए सलाम से उसका स्वागत करते थे। जब सूर्य अस्त हो गया और चिड़ियों की कलरव-युक्त पंचायत पेड़ों पर बैठी, तब यहाँ भी पंचायत आरम्भ हुई। फर्श की एक-एक अंगुल जमीन भर गई, पर अधिकांश दर्शक ही थे। निमन्त्रित महाशयों में से केवल वे ही लोग पधारे थे, जिन्हें जुम्मन से अपनी कुछ कसर निकालनी थी। एक कोने में आग सुलग रही थी। नाई ताबड़तोड़ चिलम भर रहा था। यह निर्णय करना असम्भव था कि सुलगते हुए उपलों से अधिक धुआँ निकलता था या चिलम के दमों से। लड़के इधर-उधर दौड़ रहे थे। कोई आपस में गाली-गलौज करते और कोई रोते थे। चारों तरफ कोलाहल मच रहा था। गाँव के कुत्ते इस जमाव को भोज समझकर झुंड के झुंड जमा हो गए थे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book