| कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 22 प्रेमचन्द की कहानियाँ 22प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बाइसवाँ भाग
सहसा महरी घर में से निकली। कुछ घबरायी-सी थी। वह अभी कुछ बोलने भी न पायी थी कि मीरशिकार ने बन्दूक फैर कर ही तो दी। बन्दूक छूटनी थी कि रोशनचौकी की तान भी छिड़ गयी, पामर भी कमर कसकर नाचने को खड़ा हो गया। 
महरी- अरे तुम सब-के-सब भंग खा गये हो क्या? 
मीरशिकार- क्या हुआ क्या? 
महरी- हुआ क्या, लड़की ही तो फिर हुई है। 
पिताजी- लड़की हुई है? 
यह कहते-कहते वह कमर थामकर बैठ गये मानो वज्र गिर पड़ा। घमंडीलाल कमरे से निकल आये और बोले- जाकर लेडी डॉक्टर से तो पूछ। अच्छी तरह देख ले। देखा न सुना, चल खड़ी हुई। 
महरी- बाबूजी, मैंने तो आँखों देखा है! 
घमंडीलाल- कन्या ही है? 
पिता- हमारी तकदीर ही ऐसी है बेटा! जाओ रे सब-के-सब! तुम सभी के भाग्य में कुछ पाना न लिखा था तो कहाँ से पाते। भाग जाओ। सैकड़ों रुपये पर पानी फिर गया, सारी तैयारी मिट्टी में मिल गयी। 
घमंडीलाल- इस महात्मा से पूछना चाहिए। मैं आज डाक से जरा जाकर खबर लेता हूँ। 
पिता- धूर्त है, धूर्त! 
घमंडीलाल- मैं उसकी सारी धूर्तता निकाल दूँगा। मारे डंडों के खोपड़ी न तोड़ दूँ तो कहिएगा। चांडाल कहीं का! उसके कारण मेरे सैकड़ों रुपये पर पानी फिर गया। यह सेजगाड़ी, यह गाय, यह पलना, यह सोने के गहने किसके सिर पटकूँ। ऐसे ही उसने कितनों ही को ठगा होगा। एक दफा बचा की मरम्मत हो जाती तो ठीक हो जाते। 
			
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