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प्रेमचन्द की कहानियाँ 22

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9783

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बाइसवाँ भाग


दिन गुजरने लगे, निरुपमा कभी कहती अम्माँजी, आज मैंने स्वप्न देखा कि एक वृद्धा स्त्री ने आकर मुझे पुकारा और एक नारियल देकर बोली- यह तुम्हें दिये जाती हूँ; कभी कहती, अम्माँजी, अबकी न जाने क्यों मेरे दिल में बड़ी-बड़ी उमंगें पैदा हो रही हैं, जी चाहता है खूब गाना सुनूँ, नदी में खूब स्नान करूँ, हरदम नशा-सा छाया रहता है। सास सुनकर मुस्कुराती और कहती- बहू, ये शुभ लक्षण हैं।

निरुपमा चुपके-चुपके माजून मँगाकर खाती और अपने असल नेत्रों से ताकती हुई घमंडीलाल से पूछती- मेरी आँखें लाल हैं क्या?

घमंडीलाल खुश होकर कहते- मालूम होता है, नशा चढ़ा हुआ है। ये शुभ लक्षण है।

निरुपमा को सुगंधों से कभी इतना प्रेम न था, फूलों के गजरों पर अब वह जान देती थी।

घमंडीलाल अब नित्य सोते समय उसे महाभारत की वीर कथाएँ पढ़ कर सुनाते, कभी गुरु गोविंदसिंह की कीर्ति का वर्णन करते। अभिमन्यु की कथा से निरुपमा को बड़ा प्रेम था। पिता अपने आनेवाले पुत्र को वीर-संस्कारों से परिपूरित कर देना चाहता था।

एक दिन निरुपमा ने पति से कहा- नाम क्या रखोगे?

घमंडीलाल- यह तो तुमने खूब सोचा। मुझे तो इसका ध्यान ही न रहा था। ऐसा नाम होना चाहिए जिससे शौर्य और तेज टपके। सोचो कोई नाम।

दोनों प्राणी नामों की व्याख्या करने लगे। जोरावरलाल से लेकर हरिश्चन्द्र तक सभी नाम गिनाये गये, पर उस असामान्य बालक के लिए कोई नाम न मिला। अंत में पति ने कहा- तेगबहादुर कैसा नाम है।

निरुपमा- बस-बस, यही नाम मुझे पसन्द है?

घमंडीलाल- नाम तो बढ़िया है। तेगबहादुर की कीर्ति सुन ही चुकी हो। नाम का आदमी पर बड़ा असर होता है।

निरुपमा- नाम ही तो सबकुछ है। दमड़ी, छकौड़ी, घुरहू, कतवारू, जिसके नाम देखे उसे भी 'यथा नाम तथा गुण' ही पाया। हमारे बच्चे का नाम होगा तेगबहादुर।

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