कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 23 प्रेमचन्द की कहानियाँ 23प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेइसवाँ भाग
मित्रगण उठे। डाक्टर साहब आगे-आगे चले – रविशों के दोनों ओर गुलाब की क्यारियाँ थीं। उनकी छटा दिखाते हुए वे अन्त में सुफेदे के पेड़ के सामने आ गये। मगर, आश्चर्य ! वहाँ एक फल भी न था। डाक्टर साहब ने समझा, शायद वह यह पेड़ नहीं है। दो पग और आगे चले, दूसरा पेड़ मिल गया। और आगे बढ़े तीसरा पेड़ मिला। फिर पीछे लौटे और एक विस्मित दशा में सुफेदे के वृक्ष के नीचे आ कर रुक गये। इसमें सन्देह नहीं कि वृक्ष यही है, पर फल क्या हुए? बीस-पच्चीस आम थे, एक का भी पता नहीं ! मित्रों की ओर अपराधपूर्ण नेत्रों से देख कर बोले– आश्चर्य है कि इस पेड़ में एक भी फल नहीं है। आज सुबह मैंने देखा था, पेड़ फलों से लदा हुआ था। यह देखिए, फलों का डंठल है। यह अवश्य माली की शरारत है। मैं आज उसकी हड्डियाँ तोड़ दूँगा। उस पाजी ने मुझे कितना धोखा दिया? मैं बहुत लज्जित हूँ कि आप लोगों को व्यर्थ कष्ट हुआ। मैं सत्य कहता हूँ, इस समय मुझे जितना दुःख है, उसे प्रकट नहीं कर सकता। ऐसे रंगीले, कोमल, कमनीय फल मैंने अपने जीवन में कभी न देखे थे। उनके यों लुप्त हो जाने से मेरे हृदय के टुकड़े हुए जाते हैं।
यह कह कर वे नैराश्य-वेदना से कुरसी पर बैठ गये। मित्रों ने सांत्वना देते हुए कहा–नौकरों का सब जगह यही हाल है। यह जाति ही पाजी होती है। आप हम लोगों के कष्ट का खेद न करें। यह सुफेदे न सही दूसरे फल सही।
एक सज्जन ने कहा– साहब, मुझे तो सब आम एक ही से मालूम होते हैं। सुफेदे, मोहनभोग, लँगड़े, बम्बई, फजली, दशहरी इनमें कोई भेद ही नहीं मालूम होता, न जाने आप लोगों को कैसे उनके स्वाद में फर्क मालूम होता है।
दूसरे सज्जन बोले– यहाँ भी वही हाल है। इस समय जो फल मिले, वही मँगवाइए। जो गये उनका अफसोस क्या?
डाक्टर साहब ने व्यथित भाव से कहा– आमों की क्या कमी है, सारा बाग भरा पड़ा है, खूब शौक से खाइए और बाँध कर घर ले जाइए। वे हैं और किसलिए? पर वह रस और स्वाद कहाँ? आपको विश्वास न होगा, उन सुफेदों पर ऐसा निखार था कि सेव मालूम होते थे। सेव भी देखने में ही सुन्दर होता है, उसमें वह रुचिवर्द्धक लालित्य, वह सुधामय मृदुता कहाँ! इस माली ने आज वह अनर्थ किया है कि जी चाहता है, नमकहराम को गोली मार दूँ। इस वक्त सामने आ जाये तो अधमुआ कर दूँ।
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