लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 23

प्रेमचन्द की कहानियाँ 23

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :137
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9784

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

296 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेइसवाँ भाग


बैरा- हां हुजूर, अब बहुत मजे में है। जब से हुजूर ने उसके घरवालों को बुलाकर डांट दिया है, तब से किसी ने चूं भी नहीं किया। लड़की हुजूर की जान-माल को दुआ देती है।

बैरे ने साहब को खां साहब की इत्तला की, और एक क्षण में खां साहब जूते उतार कर साहब के सामने जा खड़े हुए और सलाम करके फर्श पर बैठ गए। साहब का नाम काटन था।

काटन- ओ!ओ! यह आप क्या करता है, कुर्सी पर बैठिए, कुर्सी पर बैठिए।

काटन- नहीं, नहीं आप हमारा दोस्त है।

खां- हुजूर चाहे मेरे को आफताब बना दें, पर मैं तो अपनी हकीकत समझता हूं। बंदा उन लोगों में नहीं है जो हुजूर के करम से चार हरफ पढ़कर जमीन पर पांव नहीं रखते और हुजूर लोगों की बराबरी करने लगते हैं।

काटन- खां साहब आप बहुत अच्छे आदमी हैं। हम आज के पांचवे दिन नैनीताल जा रहा है। वहां से लौटकर आपसे मुलाकात करेगा। आप तो कई बार नैनीताल गया होगा। अब तो सब रईस लोग वहां जाता है।

खां साहब नैनीताल क्या, बरेली तक भी न गये थे, पर इस समय कैसे कह देते कि मैं वहां कभी नहीं गया। साहब की नजरों से गिर न जाते! साहब समझते कि यह रईस नहीं, कोई चरकटा है। बोले- हां हुजूर कई बार हो आया हूं।

काटन- आप कई बार हो आया है? हम तो पहली दफा जाता है। सुना बहुत अच्छा शहर है?

खां- बहुत बड़ा शहर है हुजूर, मगर कुछ ऐसा बड़ा भी नहीं है।

काटन- आप कहां ठहरता? वहां होटलों में तो बहुत पैसा लगता है।

खां- मेरी हुजूर न पूछें, कभी कहीं ठहर गया, कभी कहीं ठहर गया। हुजूर के अकबाल से सभी जगह दोस्त हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book