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			 कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 24 प्रेमचन्द की कहानियाँ 24प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौबीसवाँ भाग
डाक्टर ने खेद प्रकट करते हुए कहा- यह रोग बहुत ही गुप्तरीति से शरीर में प्रवेश करता है। 
चैतन्यदास- मेरे खानदान में तो यह रोग किसी को न था। 
डाक्टर- सम्भव है, मित्रों से इसके जर्म (कीटाणु) मिले हों। 
चैतन्यदास कई मिनट तक सोचने के बाद बोले- अब क्या करना चाहिए। 
डाक्टर- दवा करते रहिये। अभी फेफड़ो तक असर नहीं हुआ है इनके अच्छे होने की आशा है। 
चैतन्यदास- आपके विचार में कब तक दवा का असर होगा? 
डाक्टर- निश्चय पूर्वक नहीं कह सकता। लेकिन तीन चार महीने में वे स्वस्थ हो जायेंगे। जाड़ों में इस रोग का जोर कम हो जाया करता है। 
चैतन्यदास- अच्छे हो जाने पर ये पढने में परिश्रम कर सकेंगे? 
डाक्टर- मानसिक परिश्रम के योग्य तो ये शायद ही हो सकें। 
चैतन्यदास- किसी सेनेटोरियम (पहाड़ी स्वास्थ्यालय) में भेज दूँ तो कैसा हो? 
डाक्टर- बहुत ही उत्तम। 
चैतन्यदास- तब ये पूर्णरीति से स्वस्थ हो जाएंगे? 
डाक्टर- हो सकते हैं, लेकिन इस रोग को दबा रखने के लिए इनका मानसिक परिश्रम से बचना ही अच्छा है। 
चैतन्यदास नैराश्य भाव से बोले- तब तो इनका जीवन ही नष्ट हो गया। 
			
						
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