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प्रेमचन्द की कहानियाँ 24

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9785

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौबीसवाँ भाग


माया के चेहरे की कठोरता जाती रही। उसकी जगह जायज गुस्से की गर्मी पैदा हुई। बोली- इसका आपके के पास कोई सबूत है कि उन्होंने मुलजिमों पर ऐसी सख्तियां कीं?

‘यह सारी बातें आमतौर पर मशहूर थीं। लाहौर का बच्चा बच्चा जानता है। मैंने खुद अपनी आंखों से देखीं, इसके सिवा मैं और क्या सबूत दे सकता हूँ? उन बेचारों का बस इतना कसूर था कि वह हिन्दुस्तान के सच्चे दोस्त थे, अपना सारा वक्त प्रजा की शिक्षा और सेवा में खर्च करते थे। भूखे रहते थे, प्रजा पर पुलिस हुक्काम की सख्तियां न होने देते थे, यही उनका गुनाह था और इसी गुनाह की सजा दिलाने में मिस्टर व्यास पुलिस के दाहिने हाथ बने हुए थे!’

माया के हाथ से खंजर गिर पड़ा। उसकी आंखों में आंसू भर आये, बोली मुझे न मालूम था कि वे ऐसी हरकतें भी कर सकते हैं।

ईश्वरदास ने कहा- यह न समझिए कि मैं आपकी तलवार से डर कर वकील साहब पर झूठे इल्जाम, लगा रहा हूं। मैंने कभी जिन्दगी की परवाह नहीं की। मेरे लिए कौन रोने वाला बैठा हुआ है जिसके लिए जिन्दगी की परवाह करूँ। अगर आप समझती हैं कि मैंने अनुचित हत्या की है तो आप इस तलवार को उठाकर इस जिन्दगी का खात्मा कर दीजिए, मैं जरा भी न झिझकूंगा। अगर आप तलवार न उठा सकें तो पुलिस को खबर कर दीजिए, वह बड़ी आसानी से मुझे दुनिया से रुखसत कर सकती है। सबूत मिल जाना मुश्किल न होगा। मैं खुद पुलिस के सामने जुर्म का इकबाल कर लेता मगर मैं इसे जुर्म नहीं समझता। अगर एक जान से सैकड़ों जानें बच जाएं तो वह खून नहीं है। मैं सिर्फ इसलिए जिन्दा रहना चाहता हूँ कि शायद किसी ऐसे ही मौके पर मेरी फिर जरूरत पड़े।

माया ने रोते हुए कहा- अगर तुम्हारा बयान सही है तो मैं अपना, खून माफ करती हूँ तुमने जो किया या बेजा किया इसका फैसला ईश्वर करेंगे। तुमसे मेरी प्रार्थना है कि मेरे पति के हाथों जो घर तबाह हुए हैं। उनका मुझे पता बतला दो, शायद मैं उनकी कुछ सेवा कर सकूँ।

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