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प्रेमचन्द की कहानियाँ 25

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9786

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पच्चीसवाँ भाग


मुझे जीवन की कुछ आशा न रही। उस दिन न मुझसे खाया गया और न कुछ पिया ही गया। रात हुई, फिर रोटियाँ फेंक दी गयीं, लेकिन खाने की इच्छा नहीं हुई।

निश्चित समय पर तूरया ने आकर कहा- कैदी, गाना गाओ।

उस दिन मुझे कुछ अच्छा न लगता था। मैं चुप रहा।

तूरया ने फिर कहा- कैदी, क्या सो गया?

मैंने बड़े ही मलिन स्वर में कहा- नहीं, आज सोकर क्या करूँ, कल ऐसा सोऊँगा कि फिर जागना न पड़ेगा।

तूरया ने प्रश्न किया- क्यों, क्या सरकार रुपया न भेजेगी?

मैंने उत्तर दिया- भेजेगी तो, लेकिन कल तो मैं मार डाला जाऊँगा, मेरे मरने के बाद रुपया आया भी, तो मेरे किस काम का!

तूरया ने सांत्वना-पूर्ण स्वर में कहा- अच्छा, तुम गाओ, मैं कल तुम्हें मरने न दूँगी।

मैंने गाना शुरू किया। गाते समय तूरया ने पूछा- कैदी, तुम कटहरे में रहना पसन्द करते हो?

मैंने सहर्ष उत्तर दिया- हाँ, किसी तरह इस नरक से तो छुटकारा मिले।

तूरया ने कहा- अच्छा, कल मैं अब्बा से कहूँगी।

दूसरे ही दिन मुझे उस अन्धकूप से बाहर निकाला गया। मेरे दोनों पैर दो मोटी शहतीरों के छेदों में बन्द कर दिये गये। और वे काठ की ही कीलों से प्राकृतिक गड्ढों में कस दिये गये।

सरदार ने मेरे पास आकर कहा- कैदी, पन्द्रह दिन की अवधि और दी जाती है, इसके बाद तुम्हारी गर्दन तन से अलग कर दी जायगी। आज दूसरा खत अपने घर को लिखो। अगर ईद तक रुपया न आया, तो तुम्हीं को हलाल किया जायगा।

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