लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 26

प्रेमचन्द की कहानियाँ 26

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9787

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

153 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छब्बीसवाँ भाग


अचानक एक शेर जैसी गरज ने मेरे बनते हुए महल में एक भूचाल-सा ला दिया- क्या काम है? हाय रे, ये भोलापन! इस पर सारी दुनिया के हसीनों का भोलापन और बेपरवाही निसार है। इस ड्याढ़ी पर माथा रगड़ते-रगड़ते तीने सौ पैंसठ दिन, कई घण्टे और कई मिनट गुजर गए। चौखट का पत्थर घिसकर जमीन से मिल गया। ईदू बिसाती की दुकान के आधे खिलौने और गोवर्द्धन हलवाई की आधी दुकान इसी ड्यौढ़ी की भेंट चढ़ गयी और मुझसे आज सवाल होता है, क्या काम है!

मगर नहीं, यह मेरी ज्यादती है सरासर जुल्म। जो दिमाग़ बड़े-बड़े मुल्की और माली तमद्दुनी मसलों में दिन-रात लगा रहता है, जो दिमाग़ डाकूमेंटों, सरकुलरों, परवानों, हुक्मनामों, नक्शों वग़ैरह के बोझ से दबा जा रहा हो, उसके नजदीक मुझ जैसे खाक के पुतले की हस्ती ही क्या। मच्छर अपने को चाहे हाथी समझ ले पर बैल के सींग को उसकी क्या खबर। मैंने दबी जबान में कहा- हुजूर की क़दमबोसी के लिए हाजिर हुआ।

बड़े बाबू गरजे- क्या काम है?

अबकी बार मेरे रोएं खड़े हो गए। खुदा के फ़जल से लहीम-शहीम आदमी हूँ, जिन दिनों कालेज में था, मेरे डील-डौल और मेरी बहादुरी और दिलेरी की धूम थी। हाकी टीम का कप्तान, फुटवाल टीम का नायब कप्तान और क्रिकेट का जनरल था। कितने ही गोरों के जिस्म पर अब भी मेरी बहादुरी के दाग़ बाकी होंगे। मुमकिन है, दो-चार अब भी बैसाखियां लिए चलते या रेंगते हों। ‘बम्बई क्रानिकल’ और ‘टाइम्स’ में मेरे गेंदों की धूम थी। मगर इस वक्त बाबू साहब की गरज सुनकर मेरा शरीर कांपने लगा। कांपते हुए बोला- हुजूर की कदमबोसी के लिए हाजिर हुआ।

बड़े बाबू ने अपना स्लीपरदार पैर मेरी तरफ़ बढ़ाकर कहा- शौक से लीजिए, यह कदम हाजिर है, जितने बोसे चाहे लीजिए, बेहिसाब मामले हैं, मुझसे कसम ले लीजिए जो मैं गिनूँ, जब तक आपका मुंह न थक जाए, लिए जाइए! मेरे लिए इससे बढ़कर खुशनसीबी का क्या मौका होगा? औरों को जो बात बड़े जप-तप, बड़े संयम-व्रत से मिलती है, वह मुझे बैठे-बिठाये बग़ैर हड़-फिटकरी लगाए हासिल हो गयी। वल्लाह, हूं मैं भी खुशनसीब। आप अपने दोस्त-अहबाब, आत्मीय-स्वजन जो हों, उन सबको लायें तो और भी अच्छा, मेरे यहां सबको छूट है!

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book