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प्रेमचन्द की कहानियाँ 26

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9787

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छब्बीसवाँ भाग


खैर! जयगोपाल के दस साल बड़े आराम से गुज़रे। तीन बच्चे हुए। पेट ने गुम्बदनुमा सूरत अख्तियार की। चाँद के बाल झड़ने लगे, खुशकिस्मती के आने का रास्ता साफ़ होने लगा। मगर आना किसे था और आया कौन! जो बात नहीं होनी चाहिए थी, वह हो गई और उसने जयगोपाल का भविष्य स्याह कर दिया। साठ बरस के आश में बूढ़े ससुर के एक बच्चा हो गया। जयगोपाल ने सुना और सिर पीट कर रह गए। कुंदन ने बूढ़े बाप को खूब जी-भर कर कोसा और इस नवजात शिशु की लाश देखने की तमन्ना जाहिर की। कहने लगी- ''बूढ़ा साठ बरस का हुआ, मगर हविस नहीं गई। अब. उसे गले से बाँधे।'' यह सुयोग्य, आज्ञाकारी बेटी थी। खुदगर्जी! वाह रे खुदगर्जी!

एक बच्चे ने जयगोपाल की बेफिक्रियों और ऐशपरस्तियों का खात्मा कर दिया। अपनी नन्हीं-सी मुट्ठी से उसने जयगोपाल की सारी उम्मीदें और आरजूएँ, हौसले और अरमान मसल डाले। सुसराल से नवेद आया, मगर वो शरीक न हो सके। उन्हें अब अपनी तेजी की फिक्र दामनगीर हुई। आसाम चले गए और एक चाय के कारखाने में मुलाजमत कर ली। जिंदगी में पहली बार इतना दूरदराज सफ़र करना पड़ा। वह अब तक कभी तनहा नहीं रहे थे। बीवी और बच्चे उनकी जिंदगी का अंग बन गए थे। कई माह तक उनकी तबीयत न जमी। ज्यूँ-ज्यूँ दिन गुजरते गए, त्यूँ-त्यूँ घर का ख्याल कमजोर होता गया।

साल-भर मुश्किल से गुज़रा होगा कि जयगोपाल के दिल में एक नया जोश पैदा हुआ और वह यह था कि घर की हालत सुधारनी चाहिए। मोहब्बत की जगह इरादों ने छीन ली। पहले हफ्तावार खतूत जाते थे, फिर पन्द्रहवें दिन जाने लगे। यहाँ तक कि दूसरा साल गुजरते-गुजरते यह नौबत हो गई कि महीने में एक खत लिखने की भी फुर्सत न मिलती थी।

मगर कुंदन की कैफियत इसके बिलकुल विपरीत थी। जयगोपाल से उसे वही मोहब्बत थी, जो आमतौर पर बीवियों को होती, यानी शौहर की खिदमत दिलोजान से करती थी। वह मोहब्बत जो दिल को बेचैन करती है, जो आँखों को रुलाती और जिगर को तड़पाती है, वह पुरजोश जज्वा जो दिल के कुल एहसासात पर हावी हो जाता है, कुंदन को नहीं था। वह कभी अपने शौहर से अलग नहीं हुई थी और इसलिए उन एहसासात से, उन हसरतों से जो कुछ फिराक ही में माना जोर दिखाते हैं, वह परिचित नहीं थी। रिश्ते-ए-मोहब्बत में गाँठ थी, मगर ढीली, लेकिन जुदाई के इस झटके ने इस गाँठ को मजबूत कर दिया। मोहब्बत की आग, जो दबी हुई पड़ी थी, जुदाई की हवा पाकर भड़क उठी। कुंदन के दिल में एक नई और पुरजोश मोहब्बत ने जन्म लिया। वह अक्सर खामोश और उदास रहने लगी। तनहाई से उसकी तबीयत मायूस होने लगी, कभी-कभी अकेले में रोया करती। खुतूत ज्यादा लालसायुक्त होने लगे। वह सोचती-बला से मुझे मोटे कपड़े पहनने पड़ेंगे। मैं गाढ़ा पहनूँगी। बला में, मैं तकलीफ सहूँगी। कुंदन अगर्चे कई बच्चों की माँ थी, मगर इस वक्त उसके दिल में एक यौवन के उल्लास की मतवाली सुंदर स्त्री का जोशे-मोहब्बत उमड़ने लगा। उसको कितनी ही बातें याद थीं, जो उसने जयगोपाल का दिल दुःखाने के लिए कही थीं। कितनी बार उनसे लड़ी थी। इन बातों को याद करके वह रोती थी। उसने सच्चे निर्दोष जोश के साथ अपने दिल में अहद किया कि अब मैं उन्हें कुछ नहीं कहूँगी। वह जैसे रखेंगे, वैसे ही रहूँगी।

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