कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 26 प्रेमचन्द की कहानियाँ 26प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छब्बीसवाँ भाग
जयगोपाल को नौनी का रोना और बोलना सुनकर बुखार-सा आ जाता और जिस वक्त वह नींद में होते, उस वक्त तो नौनी की जबान का खुलना गोया शामत का आना था। जब वह सोते तो कुंदन अपने भाई को गोद में लेकर सबसे ऊँची मुँडेर पर चली जाती और उसे थपक-थपक कर लोरियाँ सुनाती और सुलाती। इसी बिना पर कभी-कभी जयगोपाल कुंदन को भी सख्त-सुस्त कह बैठता था। दुर्गा-पूजा में उसने अपने लड़कों के लिए रेशमी कपड़े बनवाए, मगर नौनी के लिए मामूली कपड़े भी न बनवा सका। कुंदन अपने बेकस भाई पर जुल्म देखती और दिल-ही-दिल में बल खाकर रह जाती। नौनी उससे इस कदर हिल गया था कि अस्तित्वों में कोई फ़र्क़ न बाक़ी रहा था। कुंदन के दिल में अब जयगोपाल की इज्जत रोज-बरोज़ कम होती जाती थी। वह उसे संदिग्ध निगाहों से देखती। वह कभी नौनी को उसके पास तन्हा न रहने देती। इस क़दर बदगुमान हो गई थी। वह इस मामले में बावजूद दिली कोशिश के जयगोपाल के साथ वफ़ादारी का बर्ताव नहीं कर सकती थी। जयगोपाल भी कुंदन की तरफ़ से हद-दरजा बदजन हो गया था। पहले वह नौनी को अपनी ख्वाबे-ज़िंदगी का परेशान करने वाला समझता था, अब कुंदन को। कुंदन ही उस रास्ते में रुकावट थी जो उसे धन-वैभव की तरफ़ ले जा रहा था। उसे अपनी बीवी से अब बिलकुल हमदर्दी न थी। कुंदन के दिल में यही एक उलझन थी, जो उसकी समझ में नहीं आता था।
भैया-दूज का शुभ अवसर आया। कुंदन ने आज व्रत रखा। आज के लिए उसने पहले से ही तैयारियाँ कर रखी थीं। नौनी के लिए उसने गुलाबी रंग का रेशमी कोट, नीले किनारे की धोती, सुनहरा रेशमी दुपट्टा मँगा रखा था। सुबह उसने नौनी को उबटन से मला, नहलाया, कपड़े पहनाए और दस्तूर के मुआफ़िक़ उसके माथे पर दही और चावल का टीका लगा दिया। नौनी खुशरंग कपड़े पहने गाँव में खेलता फिरता था।
स्पष्टवादी तारा भी किसी काम से इस गाँव में आ गई थी। यहाँ तरह-तरह के चर्चे हो रहे थे। तारा ने सुना और गुस्से से भरी हुई कुंदन के पास आकर बोली- ''बहन, क्या-क्या स्वाँग रचती हो। दिखावे के लिए तो नोनी का ऐसा लाड़-प्यार, मगर घर-भर उसकी जान का गाहक हो रहा है। सोने के कौर में जहर मिलाकर दे रही हो।''
कुंदन ने गुस्से से कहा- ''तारा, बरस-बरस के दिन ऐसी बातें जबान से न निकालो।''
तारा ने जवाब दिया- ''मैं कोई बात अपने मन से बनाकर थोड़े ही कहती हूँ। गाँव में जो कुछ सुना है, वह तुमसे आकर कह दिया। जिसकी बदौलत तुम्हें दुनिया का सुख मिल रहा है, उसी के लिए सब काँटे बोए जा रहे हैं। शेखरा में आठ आने पर तुम्हारे भाँजे खुरूद गोपाल का नाम चढ़ा दिया गया है और कई इलाक़ों में ऐसी ही चालें चली जा रही हैं। मगर याद रखो, ऐसी दौलत कभी हजम नहीं होती। ईश्वर सब देखता है।''
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