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प्रेमचन्द की कहानियाँ 28

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :182
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9789

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का अट्ठाइसवाँ भाग


'तो आप अलग बैठिए। हाँ, बीच में भांजी न मारिएगा।'

'मैं अलग रहूँगा।'

'और तुम सीता?'

'अलग रहूँगा।'

लेकिन जब दयानाथ से यही प्रश्न किया गया, तो वह उमानाथ से सहयोग करने को तैयार हो गया। दस हजार में ढ़ाई हजार तो उसके होंगे ही। इतनी बड़ी रकम के लिए यदि कुछ कौशल भी करना पड़े तो क्षम्य है।

फूलमती रात को भोजन करके लेटी थी कि उमा और दया उसके पास जा कर बैठ गये। दोनों ऐसा मुँह बनाए हुए थे, मानो कोई भारी विपत्ति आ पड़ी है। फूलमती ने सशंक होकर पूछा- तुम दोनों घबड़ाये हुए मालूम होते हो?

उमा ने सिर खुजलाते हुए कहा- समाचार-पत्रों में लेख लिखना बड़े जोखिम का काम है अम्माँ! कितना ही बचकर लिखो, लेकिन कहीं-न-कहीं पकड़ हो ही जाती है। दयानाथ ने एक लेख लिखा था। उस पर पाँच हजार की जमानत माँगी गयी है। अगर कल तक जमा न कर दी गयी, तो गिरफ्तार हो जायेंगे और दस साल की सजा ठुक जायेगी।

फूलमती ने सिर पीटकर कहा- ऐसी बातें क्यों लिखते हो बेटा? जानते नहीं हो, आजकल हमारे अदिन आए हुए हैं। जमानत किसी तरह टल नहीं सकती?

दयानाथ ने अपराधी-भाव से उत्तर दिया- मैंने तो अम्माँ, ऐसी कोई बात नहीं लिखी थी; लेकिन किस्मत को क्या करूँ। हाकिम जिला इतना कड़ा है कि जरा भी रियायत नहीं करता। मैंने जितनी दौड़-धूप हो सकती थी, वह सब कर ली।

'तो तुमने कामता से रूपये का प्रबन्ध करने को नहीं कहा?'

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