कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 30 प्रेमचन्द की कहानियाँ 30प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तीसवाँ भाग
‘गिरधारीलाल ने।’
लड़का रोता हुआ घर में गया और इस मार की चोट से देर तक रोता रहा। अन्त में तश्तरी में रखी हुई दूध की मलाई ने उसकी चोट पर मरहम का काम किया।
रोगी को जब जीने की आशा नहीं रहती, तो औषधि छोड़ देता है। मिस्टर रामरक्षा जब इस गुत्थी को न सुलझा सके, तो चादर तान ली और मुँह लपेट कर सो रहे। शाम को एकाएक उठ कर सेठ जी के यहाँ पहुँचे और कुछ असावधानी से बोले- महाशय, मैं आपका हिसाब नहीं कर सकता।
सेठ जी घबरा कर बोले- क्यों?
रामरक्षा- इसलिए कि मैं इस समय दरिद्र-निहंग हूँ। मेरे पास एक कौड़ी भी नहीं है। आप का रुपया जैसे चाहें वसूल कर लें।
सेठ- यह आप कैसी बातें कहते हैं?
रामरक्षा- बहुत सच्ची।
सेठ- दुकानें नहीं हैं?
रामरक्षा- दुकानें आप मुफ्त ले जाइए।
सेठ- बैंक के हिस्से?
रामरक्षा- वह कब के उड़ गये।
सेठ- जब यह हाल था, तो आपको उचित नहीं था कि मेरे गले पर छुरी फेरते?
रामरक्षा- (अभिमान) मैं आपके यहाँ उपदेश सुनने के लिए नहीं आया हूँ।
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