लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 31

प्रेमचन्द की कहानियाँ 31

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :155
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9792

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

224 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इकतीसवाँ भाग


प्रत्यक्ष रूप में दाई को न देख कर रुद्र अब उसकी कल्पना में मग्न रहता। वहाँ उसकी अन्ना चलती-फिरती दिखायी देती थी। उसकी वह गोद थी, वही स्नेह; वही प्यारी-प्यारी बातें, वही प्यारे गाने, वही मजेदार मिठाइयाँ, वही सुहावना संसार, वही आनन्दमय जीवन। अकेले बैठ कर कल्पित अन्ना से बातें करता, अन्ना, कुत्ता भूके। अन्ना, गाय दूध देती। अन्ना; उजला-उजला घोड़ा दौड़े। सबेरा होते ही लोटा लेकर दाई की कोठरी में जाता और कहता-अन्ना, पानी। दूध का गिलास लेकर उसकी कोठरी में रख आता और कहता-अन्ना, दूध पिला। अपनी चारपाई पर तकिया रख कर चादर से ढाँक देता, और कहता-अन्ना सोती है। सुखदा जब खाने बैठती तो कटोरे उठा-उठा कर अन्ना की कोठरी में ले जाता और कहता-अन्ना खाना खायगी। अन्ना अब उसके लिए एक स्वर्ग की वस्तु थी, जिसके लौटने की अब उसे बिलकुल आशा न थी। रुद्र के स्वभाव में धीरे-धीरे बालकों की चपलता और सजीवता की जगह एक निराशाजनक धैर्य, एक आनंदविहीन शिथिलता दिखायी देने लगी।

इस तरह तीन हफ्ते गुजर गये। बरसात का मौसम था। कभी बेचैन करनेवाली गर्मी, कभी हवा के ठंडे झोंके। बुखार और जुकाम का जोर था। रुद्र की दुर्बलता इस ऋतु-परिवर्तन को बर्दाश्त न कर सकी। सुखदा उसे फलालैन का कुर्ता पहनाये रखती थी। उसे पानी के पास नहीं जाने देती। नंगे पैर एक कदम भी नहीं चलने देती। पर सर्दी लग ही गयी। रुद्र को खाँसी और बुखार आने लगा।

प्रभात का समय था। रुद्र चारपाई पर आँख बन्द किये पड़ा था। डाक्टरों का इलाज निष्फल हुआ। सुखदा चारपाई पर बैठी उसकी छाती में तेल की मालिश कर रही थी और इंद्रमणि विषाद की मूर्ति बने हुए करुणापूर्ण आँखों से बच्चे को देख रहे थे। इधर सुखदा से बहुत कम बोलते थे। उन्हें उससे एक तरह की घृणा-सी हो गयी थी। वह रुद्र की बीमारी का एकमात्र कारण उसी को समझते थे। वह उनकी दृष्टि में बहुत नीच स्वभाव की स्त्री थी। सुखदा ने डरते-डरते कहा- आज बड़े हकीम साहब को बुला लेते; शायद उनकी दवा से फायदा हो।

इंद्रमणि ने काली घटाओं की ओर देख कर रुखाई से जवाब दिया- बड़े हकीम नहीं, यदि धन्वन्तरि भी आवें तो भी उसे कोई फायदा न होगा।

सुखदा ने कहा- तो क्या अब किसी की दवा न होगी?

इंद्रमणि- बस, इसकी एक ही दवा है और अलभ्य है।

सुखदा- तुम्हें तो बस वही धुन सवार है। क्या बुढ़िया आकर अमृत पिला देगी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book