कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 32 प्रेमचन्द की कहानियाँ 32प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बत्तीसवाँ भाग
झींगुर ने चिलम पीते-पीते कहा- आजकल फाग-वाग नहीं होता क्या? सुनायी नहीं देता।
हरिहर- फाग क्या हो, पेट के धंधे से छुट्टी ही नहीं मिलती। कहो, तुम्हारी आजकल कैसी निभती है?
झींगुर- क्या निभती है। नकटा जिया बुरे हवाल ! दिन-भर कल में मजदूरी करते हैं, तो चूल्हा जलता है। चाँदी तो आजकल बुद्धू की है। रखने को ठौर नहीं मिलता। नया घर बना, भेड़ें और ली हैं ! अब गृहपरबेस की धूम है। सातों गाँव में सुपारी जायगी !
हरिहर- लच्छिमी मैया आती है, तो आदमी की आँखों में सील आ जाता है। पर उसको देखो, धरती पर पैर नहीं रखता। बोलता है, तो ऐंठ ही कर बोलता है।
झींगुर- क्यों न ऐंठे, इस गाँव में कौन है उसकी टक्कर का ! पर यार, यह अनीति तो नहीं देखी जाती। भगवान् दे, तो सिर झुकाकर चलना चाहिए। यह नहीं कि अपने बराबर किसी को समझे ही नहीं। उसकी डींग सुनता हूँ, तो बदन में आग लग जाती है। कल का बानी आज का सेठ। चला है हमीं से अकड़ने। अभी कल लँगोटी लगाये खेतों में कौए हँकाया करता था, आज उसका आसमान में दिया जलता है।
हरिहर- कहो, तो कुछ उतजोग करूँ?
झींगुर- क्या करोगे ! इसी डर से तो वह गाय-भैंस नहीं पालता।
हरिहर- भेड़ें तो हैं।
झींगुर- क्या, बगला मारे पखना हाथ।
हरिहर- फिर तुम्हीं सोचो।
झींगुर- ऐसी जुगुत निकालो कि फिर पनपने न पावे।
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