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प्रेमचन्द की कहानियाँ 32

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :173
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9793

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बत्तीसवाँ भाग


बुद्धू ने सुना, और मानो ठोकर लग गयी। झींगुर भी भोजन करके वहीं बैठा था। बोला- हाय-हाय, मेरी बछिया ! चलो, जरा देखूँ तो। मैंने तो पगहिया नहीं लगायी थी। उसे भेड़ों में पहुँचाकर अपने घर चला गया। तुमने यह पगहिया कब लगा दी?

बुद्धू- भगवान् जाने जो मैंने उसकी पगहिया देखी भी हो। मैं तो तब से भेड़ों में गया ही नहीं।

झींगुर- जाते न तो पगहिया कौन लगा देता? गये होगे, याद न आती होगी।

एक ब्राह्मण- मरी तो भेड़ों में ही न? दुनिया तो यही कहेगी कि बुद्धू की असावधानी से उसकी मृत्यु हुई, पगहिया किसी की हो।

हरिहर- मैंने कल साँझ को इन्हें भेड़ों में बछिया को बाँधते देखा था।

बुद्धू- मुझे?

हरिहर- तुम नहीं लाठी कंधे पर रखे बछिया को बाँध रहे थे?

बुद्धू- बड़ा सच्चा है तू ! तूने मुझे बछिया को बाँधते देखा था?

हरिहर- तो मुझ पर काहे बिगड़ते हो भाई? तुमने नहीं बाँधी, नहीं सही।

ब्राह्मण- इसका निश्चय करना होगा। गोहत्या का प्रायश्चित्त करना पड़ेगा। कुछ हँसी ठट्ठा है।

झींगुर- महाराज, कुछ जान-बूझकर तो बाँधी नहीं।

ब्राह्मण- इससे क्या होता है? हत्या इसी तरह लगती है; कोई गऊ को मारने नहीं जाता।

झींगुर- हाँ, गऊओं को खोलना-बाँधना है तो जोखिम का काम।

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