कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 34 प्रेमचन्द की कहानियाँ 34प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौंतीसवाँ भाग
केशव - दिखा दूंगा, पहले जरा चीथड़े ले आ, नीचे बिछा दूँ। बिचारे अंडे तिनकों पर पड़े हुए हैं।
श्यामा दौड़ कर अपनी पुरानी धोती फाड़ कर एक टुकड़ा लाई और केशव ने झुक कर कपड़ा ले लिया। उसके कई तह करके उसने एक गद्दी बनाई और उसे तिनकों पर बिछा कर तीनों अंडे धीरे से उस पर रख दिए।
श्यामा ने फिर कहा - हमको भी दिखा दो भैया?
केशव - दिखा दूंगा, पहले जरा वह टोकरी तो दे दो, ऊपर साया कर दूँ।
श्यामा ने टोकरी नीचे से थमा दी और बोली - अब तुम उतर आओ, तो मैं भी देखू। केशव ने टोकरी को एक टहनी से टिकाकर कहा - जा दाना और पानी की प्याली ले आ। मैं उतर जाऊँ, तो तुझे दिखा दूंगा।
श्यामा प्याली और चावल भी लाई। केशव ने टोकरी के नीचे दोनों चीजें रख दी और धीरे से उतर आया।
श्यामा ने गिड़गिड़ाकर कहा - अब हमको भी चढ़ा दो भैया।
केशव - तू गिर पड़ेगी।
श्यामा - न गिरूँगी भैया, तुम नीचे से पकड़े रहना।
केशव - ना भैया, कहीं तू गिर-गिरा पड़े, तो अम्माजी मेरी चटनी ही बना डालें कि तूने ही चढ़ाया था। क्या करेगी देख कर? अब अंडे बड़े आराम से हैं। जब बच्चे निकलेंगे, तो उनको पालेंगे।
दोनों पक्षी बार-बार कार्निस पर आते थे और बिना बैठे ही उड़ जाते थे। केशव ने सोचा, हम लोगों के भय से यह नहीं बैठते। स्टूल उठा कर कमरे में रख आया। चौकी जहाँ-की-तहाँ रख दी।
श्यामा ने आँखों में आँसू भर कर कहा - तुमने मुझे नहीं दिखाया, मैं अम्माजी से कह दूंगी।
केशव - अम्माजी से कहेगी, तो बहुत मारूँगा, कहे देता हूँ।
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