लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 35

प्रेमचन्द की कहानियाँ 35

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :380
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9796

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

120 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पैंतीसवाँ भाग


लक्ष्मण का क्रोध बढ़ते देखकर राम ने कहा- लक्ष्मण, होश में आओ। यह क्रोध और युद्ध का समय नहीं है। यह महाराज दशरथ के वचन निभाने की बात है। मैं इस कर्तव्य को किसी भी दशा में नहीं तोड़ सकता। मेरा वन जाना निश्चित है। कर्तव्य के मुकाबले में शारीरिक सुख का कोई मूल्य का नहीं।

लक्ष्मण को जब ज्ञात हो गया कि रामचन्द्र ने जो निश्चित किया है उससे टल नहीं सकते तो बोले- अगर आपका यही निर्णय है तो मुझे भी साथ लेते चलिये। आपके बिना मैं यहां एक दिन भी नहीं रह सकता। जब आप वन में घूमेंगे तो मैं इस महल में क्योंकर रह सकूंगा। आपके बिना यह राज्य मुझे श्मशान-सा लगेगा। जब से मैंने होश संभाला, कभी आपके चरणों से विलग नहीं हुआ। अब भी उनसे लिपटा रहूंगा।

रामचन्द्र ने लक्ष्मण को प्रेमपूर्ण नेत्रों से देखा। छोटे भाई को मुझसे कितना प्रेम है! मेरे लिए जीवन के सारे सुख और आनन्द पर लात मारने के लिए तैयार है। बोले- नहीं लक्ष्मण, इस विचार को त्याग दो। भला सोचो तो, जब तुम भी मेरे साथ चले जाओगे, तो माता सुमित्रा और कौशल्या किसका मुंह देखकर रहेंगी? कौन उनके दुःख के बोझ को हल्का करेगा? भरत के राजा होने पर रानी कैकेयी सफेद और काले की मालिक होंगी। सम्भव है वह हमारी माताओं को किसी प्रकार का कष्ट दें। उस समय कौन उनकी सहायता करेगा? नहीं, तुम्हारा मेरे साथ चलना उचित नहीं।

लक्ष्मण- नहीं भाई साहब! मैं आपके बिना किसी प्रकार नहीं रह सकता। भरत की ओर से इस प्रकार का भय नहीं हो सकता। वह इतना डरपोक और नीच नहीं हो सकता। रघु के वंश में ऐसा मनुष्य पैदा ही नहीं हो सकता। आपका साथ मैं किसी तरह नहीं छोड़ सकता।

रामचन्द्र ने बहुत समझाया, किन्तु जब लक्ष्मण किसी तरह न माने तो उन्होंने कहा- अच्छा, यदि तुम नहीं मानते तो मैं तुम्हारे साथ अत्याचार नहीं कर सकता। किन्तु पहले जाकर सुमित्रा से पूछ आओ।

लक्ष्मण ने सुमित्रा से बन जाने की अनुमति मांगी तो उन्होंने उसे हृदय से लगाकर कहा- शौक से बन जाओ बेटा! मैं तुम्हें खुशी से आज्ञा देती हूं। दुःख में भाई ही भाई के काम आता है। राम से तुम्हें जितना प्रेम है, उसकी मांग यही है कि तुम इस कठिन समय में उनका साथ दो। मैं सदा तुम्हें आशीर्वाद देती रहूंगी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai