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प्रेमचन्द की कहानियाँ 36

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :189
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9797

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छत्तीसवाँ भाग


जरा देर में और देवियाँ भी आ पहुँचीं। यह वृत्तांत सुनने के लिए सभी उत्सुक हो रही थीं। जुगनू की कैंची अविश्रांत रूप से चलती रही। महिलाओं को इस वृत्तांत में इतना आनंद आ रहा था कि कुछ न पूछो। एक-एक बात को खोद-खोदकर पूछती थीं। घर के काम-धंधे भूल गए, खाने-पीने की सुधि भी न रही, और एक बार सुनकर उनकी तृप्ति न होती थी। बार-बार वही कथा नए आनंद से सुनती थीं।

मिसेज़ टंडन ने अंत में कहा- ''इस आश्रम में ऐसी महिलाओं को लाना अनुचित है। आप लोग इस प्रश्न पर विचार करें।''

मिसेज़ पांड्या ने समर्थन किया- ''हम आश्रम को आदर्श से गिराना नहीं चाहते। मैं तो कहती हूँ ऐसी औरत किसी संस्था की प्रिंसिपल बनने के योग्य नहीं।''

मिसेज़ बाँगड़ा ने फ़रमाया- ''जुगनू बाई ने ठीक कहा था, ऐसी औरतों को मुँह देखना भी पाप है। उससे साफ़ कह देना चाहिए, आप यहाँ तशरीफ़ न लावें।''

अभी यही खिचड़ी पक रही थी कि आश्रम के सामने एक मोटर आकर रुकी। महिलाओं ने सिर उठा-उठाकर देखा, गाड़ी में जिस खुरशेद और विलियम किंग बैठे हुए थे।

जुगनू ने मुँह फैलाकर हाथ से इशारा किया- ''वही लौंडा है! महिलाओं का संपूर्ण समूह चिक के सामने आने के लिए विकल हो गया।''

मिस खुरशेद ने मोटर से उतरकर हुड बंद कर दिया और आश्रम के द्वार की ओर चलीं। महिलाएँ भाग-भागकर अपनी-अपनी जगह पर आ बैठीं।

मिस खुरशेद ने कमरे में क़दम रक्खा। किसी ने स्वागत न किया। मिस खुरशेद ने जुगनू की ओर निस्संकोच आँखों से देखकर मुसकिराते हुए कहा- ''कहिए बाईजी, रात आपको चोट तो नहीं आई।''

जुगनू ने बहुतेरी दीदादिलेर स्त्रियाँ देखी थीं, पर इस ढिठाई ने उसे चकित कर दिया। चोर हाथ में चोरी का माल लिए साह को ललकार रहा था।

जुगनू ने ऐंठकर कहा- जी न भरा हो, तो अब पिटवा दो। सामने ही तो हैं।

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