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प्रेमचन्द की कहानियाँ 36

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :189
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9797

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छत्तीसवाँ भाग


खुरशेद- ''वह छू मंतर से उड़ गए। जाकर गाड़ी देख लो।''

जुगनू लपककर गाड़ी के पास गई और खूब देख-भाल कर मुँह लटकाए हुए लौटी।

मिस खुरशेद ने पूछा- ''क्या हुआ? मिला कोई?''

जुगनू- ''मैं यह तिरिया चरित्तर क्या जानूँ (लीलावती को गौर से देखकर) मर्दों को साड़ी पहनाकर आखों में धूल झोंक रही हो। यही तो हैं वह रात वाले साहब।''

खुरशेद- ''इन्हें पहचानती हो?'

जुगनू- ''हाँ-हाँ, क्या अंधी हूँ।''

मिसेज टंडन- ''क्या पागलों-सी बातें करती हो जुगनू यह तो डाक्टर लीलावती हैं।''

जुगनू- (उंगली चमकाकर) ''चलिए-चलिए, लीलावती हैं। साड़ी पहनकर औरत बनते लाज भी नहीं आती! तुम रात को नहीं इनके घर थे?''

लीलावती ने विनोद-भाव से कहा- ''मैं कब इनकार कर रही हूँ। इस वक्त लीलावती हूँ। रात को विलियम किंग बन जाती हूँ। इसमें बात ही क्या है।''

देवियों को अब यथार्थ की लालिमा दिखाई दी। चारों तरफ़ क़हक़हे पड़ने लगे। कोई तालियाँ बजाती थी, कोई डाक्टर लीलावती की गर्दन से लिपटी जाती थी, कोई मिस खुरशेद की पीठ पर थपकियाँ देती थी। कई मिनिट तक हू-हक मचता रहा। जुगनू का मुँह उस लालिमा में बिलकुल ज़रा-सा निकल आया। ज़बान बंद हो गई। ऐसा चरका उसने कभी न खाया था। इतनी जलील कभी न हुई थी।

मिसेज़ मेहरा ने डाँट बताई- ''अब बोलो दाई, लगी मुँह में कालिख की नहीं?''

मिसेज़ बाँगड़ा- ''इसी तरह यह सबको बदनाम करती है।''

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